Thursday, October 14, 2010

जगदीश कश्यप की लघुकथाएं: पूत-कपूत

जगदीश कश्यप की लघुकथाएं: पूत-कपूत: "सुबह जब वह आंगन में नल पर हाथ धो रहा था तो उसके पिता बड़बड़ाए—‘सारी दुनिया ही हरामखोर हो गई है. क्या जमाना आ गया है—लड़कियां सर्विस करें और ..."

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