Saturday, November 27, 2010

लघुकथा साहित्य और समीक्षा को समृद्ध किया है जगदीश कश्यप ने

अपनी प्रतिभा, परिश्रम, समर्पण भाव, सक्रियता और सृजनात्मक सामथ्र्य के बल पर स्थापित होने वाले लघुकथाकारों की गिनती बहुत ही कम है. जगदीश कश्यप उन बहुत ही थोड़े से लोगों में से एक हैं, जिन्होंने लघुकथा की पुन:स्थापना में बहुत महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है. उन्होंने न केवल कई कुछ सशक्त लघुकथाएं देकर लघुकथा साहित्य को समृद्ध किया है, बल्कि लघुकथा के समीक्षा पक्ष को भी पुष्ट किया है. इसी कारण तमाम कमियों और खूबियों के साथ जगदीश कश्यप का नाम पूरे सम्मान के साथ लिया जा सकता है.
अपने सृजनात्मक लेखन और महत्त्वपूर्ण आलोचनात्मक काम के साथ-साथ अपनी तीखी टिप्पणियों के कारण जगदीश कश्यप हमेशा विवादों से घिरे रहे हैं. उनके इस विवादित व्यक्तित्व के पीछे कुछ कारण हो सकते हैं. जहां तक उनके रचनात्मक योगदान का प्रश्न है, उसे किसी भी रूप में नकारा जाना संभव नहीं है.
सामाजिक-आर्थिक विसंगतियों की विडंबना में अत्यंत व उत्पीड़ित हो रहे कमजोर वर्ग की तकलीफों और संघर्षों को जगदीश कश्यप ने बड़ी शिद्दत के साथ रेखांकित किया है. भूख, गरीबी, अन्याय, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार, शोषण, दमन, अभाव, पीड़ा का बहुत सार्थक चित्रण जगदीश कश्यप की लघुकथाओं में मिलता है. बार-बार दोहराई जाने वाली स्थितियों को उठाने के बावजूद जगदीश कश्यप ने उन्हें एक नए और अछूते कोण से उठाकर मानवीय संवेदना के धरातल पर उकेरा है.
लघुकथा में ऐसे लोगों की कमी नहीं है जो ढेरोंढेर लिखने और छपने के बावजूद अभी तक एक भी सार्थक लघुकथा नहीं दे पाए हैं. जबकि जगदीश कश्यप ने कई ऐसी सार्थक लघुकथाएं साहित्य को दी हैं, जिनसे लघुकथा साहित्य समृद्ध हुआ है. ‘विकल्प का दंश’, ‘पहला गरीब’, ‘सांपों के बीच’, ‘उसका संरक्षक’....आदि कुछ ऐसी ही लघुकथाएं हैं जो लघुकथा साहित्य का प्रतिनिधित्व कर सकती हैं.
रिश्ते’ लघुकथा में मानवीय संघर्षों की जटिलता और अनाम रिश्तों को संवेदनात्मक चित्रण है.
अंतिम गरीब’ लघुकथा शोषण और दमन पर आधारित भ्रष्ट व्यवस्था के सामने प्रश्न खड़ा करने और जीवन के धनात्मक सोच का एक सशक्त उदाहरण प्रस्तुत करती है.
थर्मस’ लघुकथा में आर्थिक कुचक्र में फंसे आम आदमी के निंरतर जूझते और आहत होते जाने का मार्मिक चित्रण है.
उपकृत’ लघुकथा में मालिक द्वारा नौकर के शोषण के लिए अपनाए गए हथकंडों का बहुत मार्मिक चित्रण किया गया है.
ब्लैक हार्स’ लघुकथा मानवीय संबंधों के अवमूल्यन को बहुत मार्मिक ढंग से प्रस्तुत करती है.
इनके अतिरिक्त भी ‘सरस्वती पुत्र’, ‘दूसरा सुदामा’, ‘बबूल’, ताड़वृक्ष की छाया’ और ‘पहरुए’ आदि उल्लेखनीय लघुकथाएं हैं.
कुछ लघुकथाओं में उन्होंने प्रयोग करने के भी प्रयास किए हैं. जिनमें कुछ में वे सफल भी रहे हैं. एक लंबे अर्से से लिखते रहने के बावजूद अपना संग्रह देने की उतावली न करना भी उनकी परिपक्वता का भी उदाहरण हो सकता है. यह इन ढेरोंढेर और धड़ाधड़ पुस्तकें छपवाने वाले लोगों के लिए एक आदर्श हो सकता है. हालांकि जगदीश कश्यप की कुछ लघुकथाओं को देखकर लगता है कि उनकी लघुकथाओं में तो कलात्मक ऊंचाई और सुस्पष्ट वैचारिकता का अभी भी कहीं कुछ अभाव-सा है. संभवतः यह उनके प्रयोगवादी रचानाकार का कोई नया या अछूता अंदाज हो.
जगदीश कश्यप अपने ही प्रति क्रूर रहने वाले कुछ रचनाकारों में से हैं, जिन्हें अपनी ही कमजोर रचनाएं अपनी बनाई हुई कसौटी पर पूरी न उतरने पर खारिज करते हुए देर नहीं लगती. उन कुछ नकली और अगंभीर रचनाकारों को कम से कम कुछ तो सीखना चाहिए जो अपनी निरर्थक रचनाओं को महान बताने के लिए कैसे-कैसे हथकंडे अपनाते हैं.
जगदीश कश्यप आठवें दशक की शुरुआत से ही सक्रिय रहे हैं. चाहे ‘मिनीयुग’ का संपादन हो या किसी पत्र-पत्रिका का विशेषांक. जगदीश कश्यप अपनी तीखी टिप्पणियों के कारण हमेशा चर्चा में रहे हैं. आठवें दशक में उनके द्वारा लिखे गए आलेख ‘लघुकथा का ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य’(समग्र विशेषांक) से उनके परिश्रम और रचनात्मक ऊर्जा का पता चलता है. इसके अतिरिक्त कुछ लेख जगदीश कश्यप को समीक्षक के रूप में प्रतिष्ठित करते हैं.
लघुकथा की तकनीक को लेकर जगदीश कश्यप शुरू से ही चिंतित रहे हैं. इसके लिए उन्होंने कई एक टिप्पणियां लिखी हैं. साथ ही उन्होंने कुछ प्रश्न उठाए, जिनपर व्यापक चर्चा होती रही है और हो रही है.
जगदीश कश्यप अपनी तीखी टिप्पणियों और छद्म रचनाकारों को बेपर्दा करने के लिए हमेशा एक आतंक बने रहे हैं.
लघुकथा विधा के साथ हो रहे खिलवाड़ को लेकर एक ईमानदार रचनाकार का दुखी और चिंतित होना स्वाभाविक है. अगंभीर और छद्म रचनाकारों का विरोध करना किसी भी साधक की स्वाभाविक प्रतिक्रिया है. जिसे जायज माना जाना चाहिए. जगदीश कश्यप की पीड़ा और विरोध में काफी कुछ ऐसा ही है.
तमाम कमियों और खूबियों के बावजूद जगदीश कश्यप एक महत्त्वपूर्ण हस्ताक्षर हैं, जिनके योगदान को भुलाया जाना संभव नहीं. लघुकथा साहित्य को अभी भी उनसे बहुत-सी आशाएं और अपेक्षाएं हैं.

कमल चोपड़ा


प्रस्तुति : विनायक
कदम-कदम पर हादसे’ से

Friday, November 26, 2010

अजेय सौंदर्य

एक दिन अस्पताल में पीलिया और तपेदिक की बीमारियां अचानक टकरा गईं और एक-दूसरे का हाल जानने लगीं. तपेदिक की बीमारी ने मायूसी से कहा—‘देखो न बहन, मैं कितनी कमजोर हो गई हूं. ये डाक्टर मेरे दुश्मन जो ठहरे! में पिछले साल से एक आदमी के साथ थी, जिसे अंततः स्वस्थ बना ही दिया. मुई इन नई दवाइयों और इंजेक्शनों का नाश हो.’
पीलिया भी परेशानी वाली हालत में बोली—‘बहन, छह महीने पहले मुझे एक बुड्ढा भा गया था-बेचारा मेरे कारण बीमार पड़ गया. गलती मात्र इतनी हो गई कि बुड्ढा अमीर था. तभी तो उसने महंगे से महंगा इलाज करा लिया. पर बहन, तुम मेरी शक्ति नहीं जानतीं. इस बार मैं एक निहायत ही कोमल कली-सी युवती को पकड़ूंगी, जिसने अपने घमंड की वजह से कई छात्रों के लिए जख्मी किए हैं. मैं उसे मारूंगी नहीं पर जब उसे छोड़ूंगी, उस वक्त तक वह पेड़ के सूखे पत्ते की तरह पीली हो चुकी होगी, कोई उसकी तरफ देखना पसंद नहीं करेगा.’
पर एक व्यक्ति तो उस लड़की से तब भी शादी करने का इसरार करेगा.’
ऐसा पागल कौन हो सकता है?’
एक कवि.’ तपेदिक ने उसकी शंका मिटाते हुए कहा, ‘यह व्यक्ति वही है, जिसे उस सुंदर लड़की ने धोखा दिया था. उसकी याद में वह शराब और सिगरेट का सहारा ले रहा है. इसी कारण मुझे उसके यहां आश्रय लेना पड़ रहा है.’
तुम यहां गलती पर हो बहन.’ पीलिया ने उसे समझाया—‘दरअसल वह लड़की जिस वक्त ठीक होगी, उसे पता चलेगा कि उसका प्रेमी तुम्हारे द्वारा पीड़ित है. तब वह लड़की उसकी तीमारदारी में जुट जाएगी और तुम्हें अंततः उसके पास से भागना ही पड़ेगा.’
पर बहन, हमारी लड़ाई तो सुंदरता से है जो अपनी ही ऐंठ में बागों-बहारों में इठलाती फिरती है. नहीं तो उस कवि से दो-तीन खून की उल्टियां कराकर मार डालना कोई मुश्किल काम है?’
हां बहन, तुम ठीक कहती हो. मुझे भी सुंदरता से सख्त नफरत है. नहीं तो उस युवती से आत्महत्या आसानी से करा सकती हूं.’
सुंदरता, जो उन दोनों का वार्तालाप चुपचाप सुन रही थी, उनके बीच प्रकट हुई और बोली—‘बहनो, बदसूरत और कमजोर हो जाने पर भी वे एक-दूसरे से शादी कर लेंगे. क्या यह इस बात का सबूत नहीं कि मैं मात्र उन उन सुंदर शरीरों में वास नहीं करती हूं, जिनके दिल घमंड से भरे हुए हैं, अपितु मेरा वास उन स्वच्छ हृदयों में भी है, जो शक्ल से अत्यंत कुरूप हैं.’
यह सब सुनते ही दोनों बीमारियों ने मुंह बिचकाया और सुंदरता को देख लेने के अंदाज में घूरते हुए खिसक गईं.
प्रस्तुति: विनायक
कदम-कदम पर हादसे’ से

Thursday, November 25, 2010

माफीनामा

खाट के नीचे उसे कुछ खुसर-पुसर की आवाज सुनाई दी तो वह उठ बैठा. उसने बत्ती जलाकर इधर-उधर देखाकोई नहीं था. उसने टेबल-लैंप बुझा दिया और कुछ सोचता हुआ लेट गया.
उसे फिर सुनाई दिया‘माफीनामा-माफीनामा! बस यही शब्द उसके पल्ले पड़ रहा था. वह उठ बैठा और टेबल लैंप जलाकर हाल में लिखे ताजा पत्र को पढ़ने लगा जो उसने अखबार के मालिक को लिखा था. उसमें उसने कहा था कि वह सरकार के खिलाफ नहीं लिखेगा. छह महीने की बेकारी ने न केवल उस पर कर्जा चढ़ा दिया था. बल्कि गंभीर रूप से बीमार पत्नी और बच्चों का भविष्य भी संकट में पड़ गया था. वे सब उसी के कारण मुसीबत झेल रहे थे. ऐसी लानत-भरी जिंदगी से तो अच्छा है, सेठ से माफी मांग ली जाए. कुछ नहीं रखा इन सिद्धांत-विद्धांतों में.
उसने बत्ती बुझाई और नए निश्चय के साथ चारपाई पर लेट गया. उसी समय उसके कान में माफीनामा-माफीनामा शब्द सुनाई पड़े. वह आतंकित हो उठा.
वह झट से उठा और टेबल लैंप जलाकर ताजे लिखे पत्र को पैड में से फाड़कर चिंदी-चिंदी खाट के नीचे बिखेर दिया. अब उसे माफीनामा जैसा कोई शब्द सुनाई नहीं दिया.
प्रस्तुति: विनायक
कदम-कदम पर हादसे’ से

Tuesday, November 23, 2010

तटस्थ अस्तित्व

जिस व्यक्ति के घर में आत्मा और मन रहते थे, वह एक कवि था. एक दिन आत्मा ने कवि से शिकायत की कि मन उसके कमरे में से सत्य को चुरा ले गया है. अतः उसे सत्य वापस किया जाए, वरना वह उसका घर त्याग देगी.
कवि ने जब मन से आत्मा की शिकायत की तो वह भड़क गया, ‘वह पहले ही मेरे कमरे में असत्य, कुंठा, निराशा, आलस्य आदि चुरा ले गई है. अगर तुम मुझे ये चीजें वापस नहीं दिलाओगे तो मैं भी तुम्हारा घर छोड़ दूंगा.
कवि ने दोनों में सुलह कराने की बेतरह कोशिश की. पर असफल रहा. झगड़ा यहां तक जा पहुंचा कि एक दिन जब वह एक विशाल कवि सम्मेलन में भाग लेने जा रहा था तो मन और आत्मा उसके घर को छोड़कर चले गए.
बाद में कवि भी अपनी एक पुस्तक में जा बसा.
प्रस्तुति: विनायक
कदम-कदम पर हादसे’ से

Monday, November 22, 2010

जगदीश कश्यप की लघुकथाएं: अजाने विद्रोह की कथा

जगदीश कश्यप की लघुकथाएं: अजाने विद्रोह की कथा

अजाने विद्रोह की कथा

उसकी उंगलियों ने माचिस में घुसपैठ की और एक तीली को निकाल लिया. जलती हुई तीली सिगरेट के पास आई, वह अभी इतना ही कह पाई थी
यह आदमी अपनी बुराई क्यों नहीं सुनना चाहता कि लेखक ने सिगरेट को एक क्षण घूरा. सिगरेट गुस्से से लाल हो उठी. कहीं सिगरेट बगावत न कर दे, उसने तुरंत ही तिल्ली को झटका देकर सड़क के किसी भी ओर फेंक दिया. अब-जब भी वह सिगरेट को होठों से लगाता वह गुस्से से लाल हुई जाती. लेकिन यह सिगरेट के इस गुस्से को धुंए में डुबो देता बार-बार. अंत में उसे यह यकीन हो यगा कि उसने अपने दूसरे विरोधी को नाकाम कर दिया है. तो उसे कुछ राहत मिली. उसने झटके से सिगरेट को न केवल सड़क की पटरी पर फंेका, बल्कि उसे अपने जूते की एड़ी से मसल दिया
कहो, क्या हाल-चाल है?’ सिगरेट के टोटे ने जूते की एड़ी से पूछा.
सिगरेट का टोटा किलस गया, ‘कब तक यह शख्स मेरे विद्रोह को दबाता रहेगा! टोटे ने एड़ी से चिपककर कहा. तभी दूसरे जूते की तली से चिपकी तीली चिल्लायी‘अरे, मैं यहां हूं, इधर आओ न!’
कहकर वह जूते से अलग होकर सड़क पर आ गिरी. कुछ कदम की दूरी पर सिगरेट का टोटा भी दूसरे जूते से अलग हो, सड़क पर आ गिरा. उसके बाद सैकड़ों जूते उन दोनों के ऊपर से गुजरे. कई पास से निकल गए. लेकिन वे वहीं के वहीं पड़े रहे.
जैसे ही रात हुई, टोटे ने चिल्लाकर कहा‘अच्छा साथी, सुबह कूड़ेदान में हम दोनों फिर मिलेंगे.’
प्रस्तुति: विनायक
कदम-कदम पर हादसे’ से

Saturday, November 20, 2010

बचाने की खुशी में

एक प्रसिद्ध तैराक अनेक डूबते हुए लोगों को बचाकर काफी प्रशंसा अर्जित कर चुका था. आज वह घर की परेशनियों से तंग आकर आत्महत्या करने नदी की ओर जा रहा था. उसका विश्वास था कि वह पुल से छलांग लगाने पर हमेशा की तरह इस बार तैरने का प्रयत्न नहीं करेगा और इस तरह से डूबकर हमेशा के लिए गरीबी से पीछा छुड़ा लेगा.
पुल पर पहुंचते ही उसने चीख-पुकार की आवाजें सुनीं. जब किनारे पर आया तो उसकी गिरफ्त में बारह साल का लड़का था. पिकनिक पर आए हुए मास्टर जी ने कहा
तुमने हमारे छात्र की जान बचाई है, ये लो पचास रुपये बतौर इनाम के.’
उसने देखा कि वह स्कूली बच्चों की भीड़ से घिरा हुआ था. वह तनिक मुस्कराया और धीरे-से बोला‘जी शुक्रिया, मैंने आज तक इस काम का कोई पैसा नहीं लिया. यह तो मेरा नैतिक कर्तव्य था.’
और विजय-भाव से मुस्कराता हुआ वापस घर की ओर लौट चला.
प्रस्तुति: विनायक
कदम-कदम पर हादसे’ से  

Thursday, November 18, 2010

मशाल बनते हुए

लड़का जिस उपेक्षित अंदाज से उठ खड़ा हुआ, उससे मुझे और पत्नी को अचंभा नहीं हुआ. लड़की अब भी सिर झुकाए बैठी थी. मैने एकाएक निर्णय लिया कि अब किसी के आगे लड़की को चाय की ट्रे ले जाने को नहीं कहूंगा.
लड़के वालों को विदा कर मैं मैं लौटा तो पत्नी की आंखों में क्रोध और लड़की की सिसकियों से सहम गया. मैंने पत्नी को तसल्ली दी
तू तो खामाख्वाह परेशान हो रही है. लड़के ने शादी के लिए ‘हां’ कर दी है पर....’
मैं तुम्हारा ‘पर’ अच्छी तरह से जानती हूं. उस लड़की के बारे में सोचना छोड़ो. जहां भाग्य होगा, हो जाएगी शादी. हर बार दुकान से सौ-डेढ़-सौ का नमकीन-मीठा उधार लाते हो और....’ पत्नी अपनी नम आंखें धोती के पल्लू से पोंछने लगी.
एकाएक लड़की ने घोषणा कर दी, ‘पापा, मैं बी. एड. करूंगी. आपने मेरा एक साल यूं ही बरबाद कर दिया.’
पर बी. एड. में कह देने से ही दाखिला हो जाएगा, बिना सिफारिश के कुछ नहीं होगा.’
बेटी के गाल पर आंसू सूख चले थे. वह बोली-‘पापा, ये सब मुझ पर छोड़ दें. मैं डिग्री कालिज की प्रोफेसर के बच्चों को पढ़ाने जाती हूं. मिसिज ढींगरा मेरी मदद जरूर करेंगी.’
उसकी बात पर मैं चुप रहा तो मेरे कंधे पर सिर रखते हुए बोली-‘पापा, अपने चैपट बिजनिस पर ध्यान दो. मार्किट में फंसी अपनी उधारी निकालो. मेरी चिंता छोड़ो. मैं अब नौकरी करूंगी.’
मुझे लगा जैसे किसी ने मेरे शरीर में विटामिन का इंजेक्शन लगा दिया हो. मेरे अंदर स्फूर्ति का संचार होने लगा.
प्रस्तुति: विनायक
कदम-कदम पर हादसे’ से

Wednesday, November 17, 2010

शहतूत

सब ओर से हताश-निराश पोस्ट ग्रेजुएट बेरोजगार शहतूत के पेड़ के नीचे आकर बैठ गया और उस इंटरव्यू के बारे में सोचने लगा, जो उसके जैसे लोगों का वक्त बरबाद करने से ज्यादा कुछ नहीं था. उसे घर जाने की कोई जल्दी नहीं थी. वह मां-बाप के लिए आम नहीं बबूल का पेड़ सिद्ध हुआ था. एकाएक उसको शोर सुनाई दिया
यों निराश होकर बैठने से तुम अपने शरीर और मन को बीमार बना रहे हो. मुझे देखो, सर्दी-गर्मी-बरसात सब सहता हूं. अभी-अभी स्कूली बच्चों को तुमने देखा होगा. मुझ पर लगे कच्चे-पक्के शहतूतों को पाने के लिए मुझपर पत्थर मार रहे थे. मुझे उन बच्चों से बड़ा प्यार है. तुम अपने से प्यार करना सीखो. मेरा धर्म तो फलना है और दूसरों को देना ही देना है. फल न लगे तो कौन मेरी परवाह करेगा! उठो, अपने शरीर को फलदायक बनाओ.’
एकाएक उसको लगा कि उसके अंदर कोई शहतूत का वृक्ष उगने लगा है. वह एक नए निश्चय के साथ उठा. जहां चलने लगा तो उसने देखा कि शहतूत के वृक्ष की डालियां झूमने लगी थीं...मानो उसको आशीर्वाद दे रही हों.

प्रस्तुति: विनायक
कदम-कदम पर हादसे’ से





Monday, November 15, 2010

यूक्लिप्टस

कवि मित्र ने आंखों में आभार झलकाते हुए कहा-‘इस पांडुलिपि में तुमने जिन कमजोर रचनाओं का जिक्र किया है, मुझे भी ठीक नहीं लग रही थीं. अब इनकी जगह दूसरी सशक्त रचनाएं जोड़ दूंगा.
पर तुम इन कमजोर रचनाओं को हर बार मंच पर पढ़ते हो और तुम्हारा कहना है कि ये काफी सराही गईं हैं.’
देखो तुम, मंच पर तो कच्ची-पक्की रचनाएं चल जाती हैं. लेकिन किताब आखिर किताब होती है.’
इतने में चाय आ गई.
लो उठाओ, अबकी चाय का मजा देखो.’ नरेश ने चाय उठाई और धीरे-धीरे सिप करने लगा.
कवि बोला-‘मैं सोच रहा था, अगर तुम महीने में दो-तीन कवि सम्मेलन पकड़ लो तो मैं तुम्हें अच्छा रेट दिलवा दूंगा. तुम्हारी आर्थिक परेशानी कुछ तो हल होगी. यह अखबार वाले तुम्हें समीक्षा काॅलम का क्या देते होंगे!’
नरेश को लगा, कवि मित्र उसकी बेकारी पर दया दिखाना चाह रहा था. वह उठने लगा और चाय का आखिरी घूंट ले उठ खड़ा हुआ-‘मेरे बारे में चिंता करने का धन्यबाद. अब ये पांडुलिपि संभालो, मैं चलता हूं.’
कवि मित्र ने हाथ पकड़कर बैठाते हुए कहा-‘इस किताब की भूमिका लिखने के लिए आचार्य जी ने ‘हां’ कर दी है.’
वही आचार्य जिन्हें सरकार में जेल मंत्री का पद मिला है!’
तुम गलत समझ रहे हो, जेल मंत्री होने से क्या होता है. उनके अंदर का साहित्यकार मर पाएगा. कभी नहीं. मैं तुम्हें इस पांडुलिपि-संशोधन का पूरा पारिश्रमिक दूंगा. मैं चाहता हूं, तुम इस किताब की भूमिका इस तरह लिखो कि लगे आचार्य जी ने लिखी है. कह भी रहे थे कि मेरे नाम से लिखवा लो.’
नरेश यह सुनते ही धक रह गया. वह धीरे-से बोला-‘मेरे पास और बहुत से काम हैं....अच्छा मुझे देर हो रही है.’
उसके जाते ही कवि मित्र बड़बड़ाया-‘भरी थाली में लात मारने वाले लोग इसी तरह पूरी जिंदगी परेशान रहते हैं.’ और वह पांडुलिपि में काटी गई कमजोर रचनाओं को फिर से सही का निशान लगाने लगा.
प्रस्तुति: विनायक
कदम-कदम पर हादसे’ से

Sunday, November 14, 2010

टोटका

तीनों ही रचनाएं बेहद कमजोर थीं. संपादक ने एक नजर में रिजेक्ट मार्क कर, वापसी वाली फाइल में रख दिया. इतनी ढेर सारी रचनाओं में कुल दस-पंद्रह रचनाएं ही उसे काम की लगी थीं.
अचानक उसे कुछ ध्यान आया. अभी-अभी उसने तीन रचनाएं रिजेक्ट की थीं. संपादक के नाम पत्र के लेखक ने एक कोने पर लिखा था-‘ओम गणेशाय नमः.’
उसने फाइल को खोला और तीनों रचनाओं को फिर से पढ़ा. विशेषाक के लिए तीनों ही रचनाएं बेकार थीं. उसने फिर से उन रचनाओं को फाइल में रख दिया.
क्या हो रहा है इन लेखकों को, वही घिसे-पिटे पुराने कथानक और लचर शैली.’ संपादक खुद बड़बड़ाने लगा.
उसे अचंभा था कि लेखक ने ‘ओम नमः शिवाय’ लिखकर आखिर क्या सिद्ध करना चाहता था. क्या यह लिख देने से रचनाएं सशक्त हो जाएंगीं. ‘नहीं बिलकुल नहीं!’ वह विशेषांक में कोई हल्की चीज नहीं आने देगा. उसके जी में आया कि वह संपादक को लिखे पत्र को पूरा पढ़े. उसने फिर से फाइल खोली और पत्र पढ़ने लगा-‘संपादक जी, आपके विशेषांक हेतु तीन रचनाएं संलग्न कर रहा हूं. इनमें कोई कमी हो तो आपको ठीक करने का पूरा अधिकार है. आप जी तो नए लेखकों को सदा प्रोत्साहन देते हैं.’
पत्रा के कोने पर उसनकी नजर ‘ओम गणेशाय नमः’ पर पड़ी और उसके सामने गणपति बाबा मोरिया की तस्वीर साकार हो उठी. उसका मन श्रद्धा से भर उठा.
अचानक उसने कुछ सोचा और विशेषांक हेतु तीसरी रचना को ठीक करने लगा.

प्रस्तुति: विनायक
कदम-कदम पर हादसे’ से 

Monday, November 8, 2010

दायित्वबोध

विशाल बादलों का झुंड सारी रात चलता रहा और देश के जंगल के ऊपर छा गया.
बादलों ने खबर भिजवाई कि पेड़ों को विनाश से बचाने के लिए बहुत सारे देशों के लोग एक जगह एकत्रित हुए हैं.
ये तो बड़ी अच्छी खबर है, बादल भाई.’ विशाल बरगद ने झूमते हुए कहा. इतने में पक्षी भी चहचहाने लगे. हिरन कुलांचे भरने लगे. मोर नाचने लगे. और जलमुर्गियां प्राकृतिक झील में किल्लोल करने लगीं.
तभी बादलों ने देखा कि अनेक लोग कुल्हाड़ियों और आरियों सहित जंगल में घुस गए हैं, ‘हे वृक्ष मित्रो! सावधान, कुछ हत्यारे जंगल में आप पर हमला करने के लिए घुस आए हैं.’
वृक्षों ने असहाय भाव से बादलों की ओर देखा. पशु-पक्षी डरते हुए जहां-तहां दुबकने लगे.
साथियो चलो, अपना काम शुरू करो.’ बादल क्रुद्ध हो उठे. घनघोर बारिश शुरू हो गई. मोटे-मोटे ओले गिरने लगे. बिजली कौंधने लगी.
इस मौसम में और ऐसी बरसात, मैंने कभी नहीं देखी.’ फारेस्ट गार्ड ने बीड़ी का कश मारते हुए कहा. जंग के पेड़ सांय-सांय कर रहे थे. एकाएक बिजली चमकी और कुछ ही क्षणों में धड़ाम की आवाज पूरे जंगल में गूंज गई.
अच्छा मित्रो! हम चलते हैं. हमने अपना काम कर दिया है.’ फिर एक-एक कर बादल छितराने लगे.
बाद में घने जंगल के फारेस्ट गार्डों को छह-सात जली हुई लाशें मिलीं. कुल्हाड़ियां और आरियां इधर-उधर बिखरी पड़ी थीं. जंगल के अन्य पेड़ उस वृक्ष की प्रशंसा कर रहे थे, जिसे चीरती हुई बिजली हत्यारों तक पहुंची थी. यद्यपि पेड़ काफी घायल हो चुका था. लेकिन उसका एक तना अब भी गर्व से खड़ा हुआ अपनी डालियों के पत्तों को हवा में मंद-मंद लहरा रहा था. मानो जाते हुए बादलों का शुक्रिया अदा कर रहा हो.
प्रस्तुति: विनायक
कदम-कदम पर हादसे’ से