Friday, December 31, 2010

कहानी का प्लाट

इससे पहले वह किसी पुलिस चैकी या थाने में नहीं गया था. यद्यपि अपनी कहानियों में उसने पुलिस स्टेशन के खाके खींचे थे. चाहता तो वह उन गुंडों से निपट सकता था पर उसके शरीर ने ऐसा करने की इजाजत नहीं दी थी. दूसरी तरह की घटना या दुर्घटना हुई होती हो वह दोस्त या परिचित के साथ रिपोर्ट लिखवाने आता, लेकिन यह मामला विशुद्ध उसका ही था.
अभी रात नहीं हुई थी. पर सर्दियों में शाम भी रात का एक अंग लगती है. मुंशी जी अपना रोजनामचा भरने में व्यस्त थे. वह कुछ देर सोचता रहा. किसी ने भी उसका नोटिस नहीं लिया. जबकि इंस्पेक्टर तीन आदमी और कांस्टेबिल किसी केस में उलझे हुए थे. इंस्पेक्टर नीचे बैठे हुए आदमी को बीच में गाली और कभी-कभी उसकी पीठ भी थपथपा देता था.
कहो जनाब, क्या बात है?’ मुंशीजी ने नाक का चश्मा ऊपर करते हुए अपनी तिकोनी टोपी को संभाला.
जी, मैं रिपोर्ट लिखवाने आया हूं.’
किसकी रिपोर्ट?’
कुछ गुंडे एक लड़की को जबरदस्ती उठा ले गए हैं.’
कौन लड़की, तुम्हारी क्या लगती है?’
इसपर वह भौंचक्का हो, मुंशीजी की तरफ देखने लगा.
अबे, वो क्या तेरी बहन है?’
नहीं...वो...’वह कुछ सोचने लगा कि क्या बोले.
अबे जब वो तेरी कुछ नहीं, तब तुझे क्या दर्द है? जा अपना काम कर..’
रामप्रसाद जरा अखबार देना.’ यह आवाज इंस्पेक्टर की थी.
जी साब,’ कहकर मुंशीजी ने अखबार बढ़ा दिया.
हां बे लौंडे, अब बता भी दे कि तुझे अफीम कौन सप्लाई करता है वरना....’ यह कहते ही उसने जमीन पर बैठे मैले-कुचैले आदमी के ठोकर जमाई. वह आदमी सहमकर रह गया पर बोला कुछ नहीं.
रामप्रसाद!’ लड़की के प्रेमी ने यह सुना तो चौंक पड़ा. यह तो उसे मालूम था कि उसकी प्रेमिका का बाप इसी थाने में है. पर यह नहीं पता था कि वह किस पद पर है. उसके जी में आया कि वह चिल्लाकर कहे, ‘रामप्रसादजी, आपकी लड़की का गुंडों ने अपहरण कर लिया है. वह मेरी क्लास फैलो है. हम एक-दूसरे से प्यार करते हैं.’
वह तेजी से थाने से निकल आया. आज उसको एक अच्छी कहानी का प्लाट मिल गया था.
प्रस्तुति: विनायक
कदम-कदम पर हादसे’ से

Monday, December 27, 2010

लौटते हुए

उसने पसीने से भीगा हुआ रूमाल फिर जेब से निकाला और गर्दन के पिछले भाग को रगड़ते हुए मैनेजर को एक पाश गाली बकी. उसे याद है कि बैंच पर बैठा हुआ लड़का कह रहा था‘यार, इंटरव्यू तो खाना-पूरी करना है. आदमी तो पहले ही रख लिया गया है.’
उसने घृणावश उस बिल्डिंग की ओर थूक दिया जिसकी दसवीं मंजिल पर इंटरव्यू हुआ था. अब वह भभकती सड़क पर आ गया था. सूरज जैसे उसके सिर पर चिपक गया हो. तप गया उसका माथा. ऊपर से सड़ी दोपहरी में बस का इंतजार.
उफ!’ उसके मुंह से निकला, ‘पता नहीं कौन-सी बस में नंबर आएगा!’ और वह एक फर्लांग लंबी लाइन में पीछे जाकर खड़ा हो गया है.’
जब वह स्टेशन पर आया तो भूख जवान हो चुकी थी. शो-केस में ग्लूकोस बिस्कुट देखकर उसके मुंह में पानी आ गया. उसने चाय पीने का निश्चय किया. स्टाल पर खड़ा-खड़ा वह सोचने लगा कि अगर एक चाय-बिस्कुट के बदले डबल रोटी और एक सिगरेट खरीदेगा तो घर न जा सकेगा. क्योंकि उसकी जेब में घर तक का ही किराया बचा था.
घर जाएगा तो मां पूछेगी, क्या हुआ?...तब!
हर बार की तरह उसने मां को यह जवाब देना उचित न समझा...
मां, उन्होंने कहा है कि हम तुम्हारे घर चिट्ठी डाल देंगे. तब मां बुझ जाएगी. फिर रोजाना की वही तकरार. बीमार बाप की खांसी और बड़े भाई साहब के ताने‘और कराओ बीए. मैं तो पहले ही कहता था कि-किसी लाइन में डाल दो. पर मेरी सुनता ही कौन है.’
तब उसकी पत्नी उसका हाथ पकड़कर दूसरे कमरे में ले जाती हुई कहेगी, ‘चलो जी, क्यों खामाखं सिर खपाते हो.’
अचानक उसका ध्यान भंग हुआ, ‘बाबू चाय पीओगे?’
हां भाई, एक कड़क चाय और ब्रेड-पीस में देना.’
गर्म चाय और ब्रेड पीस से उसे कुछ राहत मिली. उसने पांच सिगरेट और खरीदीं. गाड़ी आने में अभी आधा घंटा था. उसने सिगरेट आराम से सुलगाकर थकान-भरा धुंए का बादल उड़ाया और बैंच पर पसर गया.
उसकी योजना थी कि वह बिना टिकट घर जाएगा. जाहिर था कि पकड़ा जाएगा और कैद हो जाएगी. चलो कुछ दिन तो घर के जहरीले माहौल से निजात मिलेगी.
प्रस्तुति: विनायक
कदम-कदम पर हादसे’ से 

Monday, December 13, 2010

प्रेरक

उसने चिट अंदर भिजवा दी थी. संपादक ने तुरंत ही बुलवा लिया‘आओ गुरु, इतने दिन कहां रहे? तुम्हारी कहानी मुझे मिल गई थी. बाद पोस्ट भेजने की क्या जरूरत थी. अब तुम मुझे इस तरह शर्मिंदा करोगे?’ ऐसा करते ही उसने घंटी बजाई और पियन से काफी लाने को कहा.
देखो मित्र, दोस्ती अपनी जगह है और साहित्य अपनी जगह. अब तुम एक व्यावसायिक पत्रिका के संपादक हो. कोई हल्की चीज न जाने पाए.’
ऐसा कहते ही रवि ने अपनी बढ़ी हुई दाढ़ी में हाथ फेरा. उसे वे दिन याद आ गए, जब दोनों बेरोजगार थे और सस्ती दुनकार पर उधार चाय पीते थे. दरअसल रवि ही उसे कहानी-क्षेत्र में लाया था.
तुम ठीक कहते हो, गुरु! जब तक मैं इस पद पर हूं, पत्रिका में कोई हल्की चीज न जाने दूंगा. रवि, माइंड मत करना. कोई और अच्छी कहानी दो, ये नहीं चलेगी. इसे कहीं और भेज दो.’
काफी पीने के बाद दोनों चुप रहे. फिर रवि बोला‘फिलहाल तो मेरे पास कोई और अच्छी कहानी नहीं है. ट्राई करूंगा.’ और वह अपमानित अंदाज में उठ लिया.
प्रस्तुति: विनायक
कदम-कदम पर हादसे’ से 

Friday, December 10, 2010

चादर

जब मेरी आंख खुली तो मैंने अपने दोगले मित्र को पास खड़े पाया. मुझे जागता पा उसने गिलास के पानी में ग्लूकोस घोलकर दिया. चुपचाप मैं पी गया पर मेरे हृदय में रक्त के बजाय क्रोध का संचार होने लगा. आंखों में खून तैर आया‘तुम बुजदिल हो. मुझे यहां क्यों लाए?’
शश्श्श!’ उसने उंगली होंठ पर रखकर धीरे-से कहा‘बोलो नहीं, चुपचाप पड़े रहो.’
मैं अपने इस मित्र को मजदूरों का नेता मानने के लिए शुरू से ही तैयार न था. काम चलाऊ भाषा में वह मिल-मालिक का चमचा था. और मुझ जैसे ईमानदार नेता को अपनी जानिब खींचने की असफल कोशिश कर चुका था.
ईमानदार आदमी पर आरोप लगाना ज्यादा आसान होता है. यही हुआ. स्ओर इंचार्ज होने के नाते मुझपर आरोप लगाया गया कि मैंने चालीस किलो तांबा गायब करवाया था. लिहाजा मेरी नौकरी खत्म.
अब तुम कैसे हो?’ उसने यह बात कहते ही मुस्कराहट-भरा मुखौटा ओढ़ लिया. मेरे कुछ न बोलने पर उसने धीरे से कहा‘देख लिया न मजदूरों को. किसने तुम्हारा साथ दिया? सारा काम बाखूबी चल रहा है इस मिल का.’
इस पर मैं कुछ नहीं बोला तो वह कह उठा‘सुनो, मैं तुम्हें एक ऐसा हलका काम दिलवा दूंगा, जिसमें कुछ भी मेहनत नहीं करनी होगी. रुपये भी पूरे पंद्रह सौ महीना मिलेंगे. मजे की बात तो यह है कि तुम एक-एक मजदूर से अपने अपमान का बदला भी ले सकते हो.’ यह कहते ही उसने मुझे एक चादर दिखाई जो अभी तक उसके जिस्म के चारों ओर लिपटी हुई थी.
मेरा काम बस इतना ही है कि मैं रात के समय यह चादर किसी मजदूर को ओढ़ा देता हूं और मजे से पंद्रह सौ रुपये महावार पीट लेता हूं.’
चादर ओढ़ाना तो पुण्य का काम है?’
यही तो तुम्हें समझाना चाहता था. पर तुम अब तक समझे ही नहीं.’
उसी रात को मैं मित्र द्वारा दी गई चादर को लेकर अपने किसी मजदूर भाई की झोपड़ी में घुसा और उसकी पत्नी से बोला की वह उस चादर को अपने सोते हुए पति पर डाल दे. उसकी पत्नी ने ऐसा ही किया. क्योंकि वह जानती थी कि मेरे द्वारा दी गई चादर भाग्यवाले को ही मिलेगी.’
उस मजदूर की पत्नी ने सुबह जब अपने पति के ऊपर से चादर हटानी चाही तो भय से चीख पड़ी. चादर का रंग सुर्ख पड़ चुका था. उसका पति अब भी गहरी नींद में सोया था. पति का चेहरा देखकर वह गश खाते-खाते बची. गालों की हड्डियां शंकु के समान उभर आई थीं. आंखें धंस गई थीं. पेट की पसलियां खाल को फाड़कर बाहर आना चाहती थीं. जब उसे जगाया गया तो मजदूर ने बताया कि उसके पैरों में जान नहीं रही थी. शायद वह किसी बीमारी द्वारा जकड़ लिया गया था.
वह औरत दौड़ी-दौड़ी मेरे पास आई और वह चादर मुझपर फंेक, गाली बकती हुई चली गई.
अब मुझे चादर को किसी दूसरे मजदूर के लिए इस्तेमाल करना था.
प्रस्तुति: विनायक
कदम-कदम पर हादसे’ से

Thursday, December 9, 2010

पात्र-अपात्र

उस दिन वह एक असफल इंटरव्यू देकर रात के वक्त लौटा तो पाया कि बड़ा भाई मां के आगे नशे में बक रहा था ‘और पढ़ाओ, और कराओ बीए. बीए तो साले हमारी प्रेस में चपरासी हैं. मेरे लिए चाय लाते हैं, बेचारे.’
उसके ठीक बाद पिता की बहकी हुई आवाज सुनाई दी ‘उसने सोलहवीं करके कौन-सा तीर मार दिया है. कौन-सा घर का नाम ऊंचा किया है ऊपर से साला ऐंठता है कि हम क्यों पीते हैं. अरे, तेरे पैसों की तो नहीं पीते. वो तो भगवान ने गंजे को नाखून नहीं दिए वरना....’
वह सिर से पांव तक हिल गया. जी में आया कि जोर से बंद किबाड़ों को लात मारकर तोड़ दे और दोनों की जी-भर पिटाई करे और कहे ‘जलीलो, ये बातें मूत पीकर करते हो, सामने क्या हो जाता है.’
पर वह चुपचाप दरवाजा ठकठकाता है. मां दरवाजा खोलती है. वह योग्यता प्रमाणपत्रों वाला लिफाफा पीठ पीछे किए धीरे-से घर के अंदर दाखिल होता है. पूरे कमरे में सन्नाटा छा गया है. बड़ा भाई भौंचक्का बना मां को देख रहा था. जबकि छोटा भाई अंगीठी में मूंगफली के छिलके डालकर धुंआ पैदा कर रहा था. ख्वामखाह ही. इसका मतलब उसने भी चढ़ा रखी थी.
अचानक उसके दिल में आया कि वह दहाड़ मारकर बड़े भाई के आगे गिर पड़े और डकार मारकर कहे ‘भइया मुझे भी कल से अपने अपनी प्रेस में ले चलो काम सिखाने. तुम खूब पियोमुझे कुछ गिला नहीं. तुम शराब पीने के पात्र हो, क्येंकि तुम्हारे हाथ में हुनर है.’
पर वह चुपचाप अंदर वाले कमरे में जाकर धम्म से गिर पड़ता है. डिग्रियों वाला लिफाफा अब उसके पैरों में पायताना दबकर रह गया था.
प्रस्तुति : विनायक
कदम-कदम पर हादसे’ से

Monday, December 6, 2010

भूख

वह पूरी ताकत से भाग रहा था. जब वह रुका तो उसने अपने को किसी बड़े नगर में पाया. कई बार रो पड़ने के बावजूद किसी ने भी उसे अपने पवित्र घर में घुसने नहीं दिया था. अब वह गांव की ओर दौड़ रहा था.
उसे अच्छी तरह मालूम था कि पीछा करने वाली डायन उसे मां-बाप को भी निगल गई थी. पूरी की पूरी जिंदगी उसने इस डायन की कैद से छुटकारा पाने में बरबाद कर दी थी. किसी तरह वह एक रात को चुपचाप भाग निकला था.
उसने एक झोपड़ी का द्वार खटखटाया. खस्ता हालत में खड़ा टट्टर उसके जरा-सा धकेलते ही खुल गया. लेकिन सामने देखते ही वह भय से चीख पड़ा. एक बूढ़े की लाश के पास खड़ी वह क्रूरता से मुस्करा रही थी
ये बुढ्ढा भी वर्षों पहले मेरे चंगुल से निकल भागा था. एक हफ्ते तक मैंने इसे खाट से उठने नहीं दिया.’
उसके यह सोचते ही कि वह तीन दिन से भूखा है, उसके पेट में कुछ ऐंठन-सी हुई. फिर भी वह मुड़ भागा वह मुस्कराती रही.
जैसे ही वह एक मोड़ पर रुका, वह सामने खड़ी थी. तुरंत ही उसने ढेर-सा खून उगला और उसके कदमों में गिर पड़ा.
प्रस्तुति : विनायक
कदम-कदम पर हादसे’ से

Saturday, November 27, 2010

लघुकथा साहित्य और समीक्षा को समृद्ध किया है जगदीश कश्यप ने

अपनी प्रतिभा, परिश्रम, समर्पण भाव, सक्रियता और सृजनात्मक सामथ्र्य के बल पर स्थापित होने वाले लघुकथाकारों की गिनती बहुत ही कम है. जगदीश कश्यप उन बहुत ही थोड़े से लोगों में से एक हैं, जिन्होंने लघुकथा की पुन:स्थापना में बहुत महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है. उन्होंने न केवल कई कुछ सशक्त लघुकथाएं देकर लघुकथा साहित्य को समृद्ध किया है, बल्कि लघुकथा के समीक्षा पक्ष को भी पुष्ट किया है. इसी कारण तमाम कमियों और खूबियों के साथ जगदीश कश्यप का नाम पूरे सम्मान के साथ लिया जा सकता है.
अपने सृजनात्मक लेखन और महत्त्वपूर्ण आलोचनात्मक काम के साथ-साथ अपनी तीखी टिप्पणियों के कारण जगदीश कश्यप हमेशा विवादों से घिरे रहे हैं. उनके इस विवादित व्यक्तित्व के पीछे कुछ कारण हो सकते हैं. जहां तक उनके रचनात्मक योगदान का प्रश्न है, उसे किसी भी रूप में नकारा जाना संभव नहीं है.
सामाजिक-आर्थिक विसंगतियों की विडंबना में अत्यंत व उत्पीड़ित हो रहे कमजोर वर्ग की तकलीफों और संघर्षों को जगदीश कश्यप ने बड़ी शिद्दत के साथ रेखांकित किया है. भूख, गरीबी, अन्याय, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार, शोषण, दमन, अभाव, पीड़ा का बहुत सार्थक चित्रण जगदीश कश्यप की लघुकथाओं में मिलता है. बार-बार दोहराई जाने वाली स्थितियों को उठाने के बावजूद जगदीश कश्यप ने उन्हें एक नए और अछूते कोण से उठाकर मानवीय संवेदना के धरातल पर उकेरा है.
लघुकथा में ऐसे लोगों की कमी नहीं है जो ढेरोंढेर लिखने और छपने के बावजूद अभी तक एक भी सार्थक लघुकथा नहीं दे पाए हैं. जबकि जगदीश कश्यप ने कई ऐसी सार्थक लघुकथाएं साहित्य को दी हैं, जिनसे लघुकथा साहित्य समृद्ध हुआ है. ‘विकल्प का दंश’, ‘पहला गरीब’, ‘सांपों के बीच’, ‘उसका संरक्षक’....आदि कुछ ऐसी ही लघुकथाएं हैं जो लघुकथा साहित्य का प्रतिनिधित्व कर सकती हैं.
रिश्ते’ लघुकथा में मानवीय संघर्षों की जटिलता और अनाम रिश्तों को संवेदनात्मक चित्रण है.
अंतिम गरीब’ लघुकथा शोषण और दमन पर आधारित भ्रष्ट व्यवस्था के सामने प्रश्न खड़ा करने और जीवन के धनात्मक सोच का एक सशक्त उदाहरण प्रस्तुत करती है.
थर्मस’ लघुकथा में आर्थिक कुचक्र में फंसे आम आदमी के निंरतर जूझते और आहत होते जाने का मार्मिक चित्रण है.
उपकृत’ लघुकथा में मालिक द्वारा नौकर के शोषण के लिए अपनाए गए हथकंडों का बहुत मार्मिक चित्रण किया गया है.
ब्लैक हार्स’ लघुकथा मानवीय संबंधों के अवमूल्यन को बहुत मार्मिक ढंग से प्रस्तुत करती है.
इनके अतिरिक्त भी ‘सरस्वती पुत्र’, ‘दूसरा सुदामा’, ‘बबूल’, ताड़वृक्ष की छाया’ और ‘पहरुए’ आदि उल्लेखनीय लघुकथाएं हैं.
कुछ लघुकथाओं में उन्होंने प्रयोग करने के भी प्रयास किए हैं. जिनमें कुछ में वे सफल भी रहे हैं. एक लंबे अर्से से लिखते रहने के बावजूद अपना संग्रह देने की उतावली न करना भी उनकी परिपक्वता का भी उदाहरण हो सकता है. यह इन ढेरोंढेर और धड़ाधड़ पुस्तकें छपवाने वाले लोगों के लिए एक आदर्श हो सकता है. हालांकि जगदीश कश्यप की कुछ लघुकथाओं को देखकर लगता है कि उनकी लघुकथाओं में तो कलात्मक ऊंचाई और सुस्पष्ट वैचारिकता का अभी भी कहीं कुछ अभाव-सा है. संभवतः यह उनके प्रयोगवादी रचानाकार का कोई नया या अछूता अंदाज हो.
जगदीश कश्यप अपने ही प्रति क्रूर रहने वाले कुछ रचनाकारों में से हैं, जिन्हें अपनी ही कमजोर रचनाएं अपनी बनाई हुई कसौटी पर पूरी न उतरने पर खारिज करते हुए देर नहीं लगती. उन कुछ नकली और अगंभीर रचनाकारों को कम से कम कुछ तो सीखना चाहिए जो अपनी निरर्थक रचनाओं को महान बताने के लिए कैसे-कैसे हथकंडे अपनाते हैं.
जगदीश कश्यप आठवें दशक की शुरुआत से ही सक्रिय रहे हैं. चाहे ‘मिनीयुग’ का संपादन हो या किसी पत्र-पत्रिका का विशेषांक. जगदीश कश्यप अपनी तीखी टिप्पणियों के कारण हमेशा चर्चा में रहे हैं. आठवें दशक में उनके द्वारा लिखे गए आलेख ‘लघुकथा का ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य’(समग्र विशेषांक) से उनके परिश्रम और रचनात्मक ऊर्जा का पता चलता है. इसके अतिरिक्त कुछ लेख जगदीश कश्यप को समीक्षक के रूप में प्रतिष्ठित करते हैं.
लघुकथा की तकनीक को लेकर जगदीश कश्यप शुरू से ही चिंतित रहे हैं. इसके लिए उन्होंने कई एक टिप्पणियां लिखी हैं. साथ ही उन्होंने कुछ प्रश्न उठाए, जिनपर व्यापक चर्चा होती रही है और हो रही है.
जगदीश कश्यप अपनी तीखी टिप्पणियों और छद्म रचनाकारों को बेपर्दा करने के लिए हमेशा एक आतंक बने रहे हैं.
लघुकथा विधा के साथ हो रहे खिलवाड़ को लेकर एक ईमानदार रचनाकार का दुखी और चिंतित होना स्वाभाविक है. अगंभीर और छद्म रचनाकारों का विरोध करना किसी भी साधक की स्वाभाविक प्रतिक्रिया है. जिसे जायज माना जाना चाहिए. जगदीश कश्यप की पीड़ा और विरोध में काफी कुछ ऐसा ही है.
तमाम कमियों और खूबियों के बावजूद जगदीश कश्यप एक महत्त्वपूर्ण हस्ताक्षर हैं, जिनके योगदान को भुलाया जाना संभव नहीं. लघुकथा साहित्य को अभी भी उनसे बहुत-सी आशाएं और अपेक्षाएं हैं.

कमल चोपड़ा


प्रस्तुति : विनायक
कदम-कदम पर हादसे’ से

Friday, November 26, 2010

अजेय सौंदर्य

एक दिन अस्पताल में पीलिया और तपेदिक की बीमारियां अचानक टकरा गईं और एक-दूसरे का हाल जानने लगीं. तपेदिक की बीमारी ने मायूसी से कहा—‘देखो न बहन, मैं कितनी कमजोर हो गई हूं. ये डाक्टर मेरे दुश्मन जो ठहरे! में पिछले साल से एक आदमी के साथ थी, जिसे अंततः स्वस्थ बना ही दिया. मुई इन नई दवाइयों और इंजेक्शनों का नाश हो.’
पीलिया भी परेशानी वाली हालत में बोली—‘बहन, छह महीने पहले मुझे एक बुड्ढा भा गया था-बेचारा मेरे कारण बीमार पड़ गया. गलती मात्र इतनी हो गई कि बुड्ढा अमीर था. तभी तो उसने महंगे से महंगा इलाज करा लिया. पर बहन, तुम मेरी शक्ति नहीं जानतीं. इस बार मैं एक निहायत ही कोमल कली-सी युवती को पकड़ूंगी, जिसने अपने घमंड की वजह से कई छात्रों के लिए जख्मी किए हैं. मैं उसे मारूंगी नहीं पर जब उसे छोड़ूंगी, उस वक्त तक वह पेड़ के सूखे पत्ते की तरह पीली हो चुकी होगी, कोई उसकी तरफ देखना पसंद नहीं करेगा.’
पर एक व्यक्ति तो उस लड़की से तब भी शादी करने का इसरार करेगा.’
ऐसा पागल कौन हो सकता है?’
एक कवि.’ तपेदिक ने उसकी शंका मिटाते हुए कहा, ‘यह व्यक्ति वही है, जिसे उस सुंदर लड़की ने धोखा दिया था. उसकी याद में वह शराब और सिगरेट का सहारा ले रहा है. इसी कारण मुझे उसके यहां आश्रय लेना पड़ रहा है.’
तुम यहां गलती पर हो बहन.’ पीलिया ने उसे समझाया—‘दरअसल वह लड़की जिस वक्त ठीक होगी, उसे पता चलेगा कि उसका प्रेमी तुम्हारे द्वारा पीड़ित है. तब वह लड़की उसकी तीमारदारी में जुट जाएगी और तुम्हें अंततः उसके पास से भागना ही पड़ेगा.’
पर बहन, हमारी लड़ाई तो सुंदरता से है जो अपनी ही ऐंठ में बागों-बहारों में इठलाती फिरती है. नहीं तो उस कवि से दो-तीन खून की उल्टियां कराकर मार डालना कोई मुश्किल काम है?’
हां बहन, तुम ठीक कहती हो. मुझे भी सुंदरता से सख्त नफरत है. नहीं तो उस युवती से आत्महत्या आसानी से करा सकती हूं.’
सुंदरता, जो उन दोनों का वार्तालाप चुपचाप सुन रही थी, उनके बीच प्रकट हुई और बोली—‘बहनो, बदसूरत और कमजोर हो जाने पर भी वे एक-दूसरे से शादी कर लेंगे. क्या यह इस बात का सबूत नहीं कि मैं मात्र उन उन सुंदर शरीरों में वास नहीं करती हूं, जिनके दिल घमंड से भरे हुए हैं, अपितु मेरा वास उन स्वच्छ हृदयों में भी है, जो शक्ल से अत्यंत कुरूप हैं.’
यह सब सुनते ही दोनों बीमारियों ने मुंह बिचकाया और सुंदरता को देख लेने के अंदाज में घूरते हुए खिसक गईं.
प्रस्तुति: विनायक
कदम-कदम पर हादसे’ से

Thursday, November 25, 2010

माफीनामा

खाट के नीचे उसे कुछ खुसर-पुसर की आवाज सुनाई दी तो वह उठ बैठा. उसने बत्ती जलाकर इधर-उधर देखाकोई नहीं था. उसने टेबल-लैंप बुझा दिया और कुछ सोचता हुआ लेट गया.
उसे फिर सुनाई दिया‘माफीनामा-माफीनामा! बस यही शब्द उसके पल्ले पड़ रहा था. वह उठ बैठा और टेबल लैंप जलाकर हाल में लिखे ताजा पत्र को पढ़ने लगा जो उसने अखबार के मालिक को लिखा था. उसमें उसने कहा था कि वह सरकार के खिलाफ नहीं लिखेगा. छह महीने की बेकारी ने न केवल उस पर कर्जा चढ़ा दिया था. बल्कि गंभीर रूप से बीमार पत्नी और बच्चों का भविष्य भी संकट में पड़ गया था. वे सब उसी के कारण मुसीबत झेल रहे थे. ऐसी लानत-भरी जिंदगी से तो अच्छा है, सेठ से माफी मांग ली जाए. कुछ नहीं रखा इन सिद्धांत-विद्धांतों में.
उसने बत्ती बुझाई और नए निश्चय के साथ चारपाई पर लेट गया. उसी समय उसके कान में माफीनामा-माफीनामा शब्द सुनाई पड़े. वह आतंकित हो उठा.
वह झट से उठा और टेबल लैंप जलाकर ताजे लिखे पत्र को पैड में से फाड़कर चिंदी-चिंदी खाट के नीचे बिखेर दिया. अब उसे माफीनामा जैसा कोई शब्द सुनाई नहीं दिया.
प्रस्तुति: विनायक
कदम-कदम पर हादसे’ से

Tuesday, November 23, 2010

तटस्थ अस्तित्व

जिस व्यक्ति के घर में आत्मा और मन रहते थे, वह एक कवि था. एक दिन आत्मा ने कवि से शिकायत की कि मन उसके कमरे में से सत्य को चुरा ले गया है. अतः उसे सत्य वापस किया जाए, वरना वह उसका घर त्याग देगी.
कवि ने जब मन से आत्मा की शिकायत की तो वह भड़क गया, ‘वह पहले ही मेरे कमरे में असत्य, कुंठा, निराशा, आलस्य आदि चुरा ले गई है. अगर तुम मुझे ये चीजें वापस नहीं दिलाओगे तो मैं भी तुम्हारा घर छोड़ दूंगा.
कवि ने दोनों में सुलह कराने की बेतरह कोशिश की. पर असफल रहा. झगड़ा यहां तक जा पहुंचा कि एक दिन जब वह एक विशाल कवि सम्मेलन में भाग लेने जा रहा था तो मन और आत्मा उसके घर को छोड़कर चले गए.
बाद में कवि भी अपनी एक पुस्तक में जा बसा.
प्रस्तुति: विनायक
कदम-कदम पर हादसे’ से