Friday, October 29, 2010

दयालु लोग

टीवी एंटीना पर बैठी एक चिड़िया दूसरी चिड़िया से बोली
आज का आदमी बड़ा दयालु हो गया है. वह जानता है कि हम दिन भर उड़ती-फिरती थक जाती होंगी, इसलिए उसने हम लोगों के आराम करने के लिए छतों पर स्टेंड लगवा दिए हैं.’
तू बड़ी भोली है बहन,’ दूसरी चिड़िया ने कहा‘ये हमारे बैठने का स्टेंड नहीं है. ये तो आदमी को मजबूरी में लगाना पड़ा है. इसकी सहायता से आदमी अपने टेलीविजन सैट पर फोटो आदि देखता है, जैसे लोग सिनेमा में देखते हैं.’
तू यह सब कैसे जानती है, बहन? मुझे तेरी बात पर यकीन नहीं आता.’
अच्छा चल, मैं तुझे एक करिश्मा दिखाऊं. मैं तुझे एक कोठी में ले चलती हूं.’
दोनों चिड़िया रोशनदान के रास्ते से कोठी के उस कमरे में पहुंची जहां वीडियो कैसेट चल रहा था. विशिष्ट लोग ऐसा दृश्य देख रहे थे, जिसमें एक लड़की से बलात्कार किया जा रहा था.
दोनों चिड़िया की टीबी...टुट-टुट और फड़फड़ाहट से विशिष्ट लोगों के आनंद में बाधा पड़ रही थी. उनमें एक, शायद वह मिल-मालिक का लड़का था, बोला‘इन हरामजादियों को यहां से भगाओ!’
इसपर एक कालिजिएट लड़की उठी. उसने अपने गले के दुपट्टे से उन दोनों चिड़िया को भगाना चाहा. दोनों चिड़िया घबराकर बाहर निकल आईं.
पहली चिड़िया दूसरी से बोली‘तू ठीक कहती है, बहन, आज का आदमी दयालु नहीं, बड़ा दुष्ट हो गया है.’
प्रस्तुति: विनायक
कदम-कदम पर हादसे’ से 

Wednesday, October 27, 2010

सुखी आदमी

मैं अपनी गंदी सड़ियल कोठरी में घुसा ही था कि दो पुरुषों के बीच दो युवतियों को बैठे देखा. इन्हें मैंने पहले कभी नहीं देखा था, अलबत्ता इनका पहनावा ऐसा ही था, जैसा भिखारियों का होता है और हम जिन्हें अमूमन भीख देने के नाम पर दुत्कार देते हैं. टूटे हुए स्टूल पर मेरे बैठते ही युवती बोली
मैं स्पष्टवादिता हूं, तुम अपने अखबार में जिस तरह मेरा उपयोग करते हो, उसी का परिणाम है कि लोग तुमसे चिढ़ गए हैं और तुम्हें विज्ञापन मिलने बंद हो गए हैं.’
तुरंत बाद ही एक पुरुष बोला‘मेरा नाम सीधापन है. मैं तुम्हारे साथ हूं. इसलिए लोग तुम्हें बेबकूप समझते हैं और तुम्हारा शोषण हो रहा है.’
दूसरी युवती ने कहा‘मैं ईमानदारी हूं. जब तक मैं तुम्हारे साथ रहूंगी, तब तक तुम्हें सच्ची खबर छापने के एवज में कोई सरकारी अधिकारी घास तक न डालेगा, जबकि दूसरे लोग झूठी खबर छापते हुए इन अधिकारियों को ब्लैकमेल कर मालामाल हुए जा रहे हैं.’
मैं परिश्रम हूं.’ अंतिम अतिथि ने परिचय देते हुए कहा‘रात दिन अथक भागदौड़ के बावजूद तुम्हें दो जून का खाना भी ढंग से नसीब नहीं होता, इसलिए हम सबने सोचा है कि तुम्हारी हालत पर रहम किया जाए, ताकि तुम पर नाकारा, अयोग्य और सनकी जैसे आरोप न लग सकें.’
एक क्षण को तो मैं उनकी बात पर स्तब्ध रह गया. मैं तुरंत संभल गया और धीरे-से बोला‘तुम सबके कारण ही मेरी शहर में इतनी इज्जत है. मैं कथा-कविताएं लिख-लिखकर अपने बाल-बच्चों का पेट पाल रहा हूं. आप मुझे छोड़कर चले जाएंगे, जब मैं एक दिन भी जीवित नहीं रह सकता.’
मेरे निकलते आंसू देखकर चारों कुछ सोचने लगे. इसके बाद परिश्रम ने कहा
हम तुम्हारे साथ रहने को तैयार हैं. बशर्ते तुम अखबार निकालना बंद कर दो. इस तरह प्रेस वाला तुम्हें बार-बार अपमानित नहीं करेगा. क्योंकि वह जानता है कि तुम समय पर कागज और प्रिंटिंग चार्ज नहीं चुका पाते हो. तुम जमकर कथा/कविता लिखो, फिर देखो हम तुम्हारा कैसा नाम चमकाते हैं.’
दोस्तो!’ मैंने तुरंत कहा‘ना तो मैं अखबार बंद करूंगा और न ही कथा-कविता लिखना छोड़ रहा हूं. तुम्हें मेरे कारण कष्ट हो तो मुझे छोड़कर जा सकते हो.’
हम तुम्हारी दृढ़ता पर अत्यंत मुग्ध हैं. अब तुम्हारे घर में स्थायी रूप से निवास करेंगे. और मरते दम तक तुम्हारा साथ नहीं छोड़ेंगे.’
तभी हर व्यक्ति धुआं बनने लगा. कोई मेरे मुंह, कोई नाक, कोई आंख व कान के रास्ते मुझमें समा गया. मुझे लगा कि मुझमें अतिरिक्त शक्ति पैदा होने लगी है....और मैं संसार का सबसे सुखी आदमी हूं.’
प्रस्तुति : विनायक
कदम-कदम पर हादसे’ से

Monday, October 25, 2010

उनका दर्द

उस रात धवल चांदनी में नहा रहा एक पत्थर बोला
बहन शिला, किसान नहीं जानते कि उस खंडहर महल और हम पर देश के विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में कितना कुछ छापा है. विदेशी विद्वान कितनी मुसीबतें उठाकर यहां तक आते हैं और हम पर खुदे लेखों को कितनी सावधानी से पढ़ने की कोशिश करते हैं या फोटो उतारते हैं.’
शिला बोली‘भाई मेरे , इस गुमटी के आसपास उस वक्त भी खेती होती थी, जब हमें यहां पर राजा की आज्ञा से उसकी यशोगाथा खुदवाकर गाढ़ा गया था. आज इन बातों को हजारों साल बीत गए हैं. उस राजा के जमाने में भी किसान रोता था, और आज भी ये लोग रोते हैं. जबकि अनेक किसान समर्थक नेता और राजनीतिक लोग इनके समर्थन में जुलूस और रैली आयोजित करते रहते हैं.’
हां, ये चमत्कार क्या है बहन? आज खेती करना कितना आसान हो गया है. ट्रेक्टर , खाद, बीज, थ्रैशर, बिजली-पानी की सुविधा आज के किसान को उपलब्ध है. फिर इनके रोने का कारण क्या है?’
इस पर शिला कुछ सोचते हुए बोली‘खेती चाहे कितनी भी आधुनिक क्यों न हो जाए, पर गरीब किसान वही हल-बैल से आगे नहीं बढ़ पाएगा. सच में इनकी नियति हमारी तरह है. शासक आएंगे, चले जाएंगे, पर पीढ़ी-दर-पीढ़ी ये लोग ऐसे ही रहेंगे जैसे कि हम. क्या कभी किसान के नाम का पत्थर या शिलाखंड कहीं गाढ़ा गया है, जिसपर किसान के दुख और कष्ट उकेरे गए हों!’
तभी चंद्रमा के मुख पर काले बादल छा गए और उस घोर अंधकार में पत्थर कुछ सोचने लगा.

प्रस्तुति : विनायक
कदम-कदम पर हादसे’ से

Sunday, October 24, 2010

जगदीश कश्यप की लघुकथाएं: आखिरी खंबा

जगदीश कश्यप की लघुकथाएं: आखिरी खंबा: "शहर के अंतिम सिरे पर लगे बिजली के खंभे ने एक सुनसान रात को नगर के फैशनेबल इलाके में स्थित खंभे से तार के माध्यम से पूछा— ‘कहो यार, कुछ तो स..."

आखिरी खंबा

शहर के अंतिम सिरे पर लगे बिजली के खंभे ने एक सुनसान रात को नगर के फैशनेबल इलाके में स्थित खंभे से तार के माध्यम से पूछा
कहो यार, कुछ तो सुनाओ, मैं तुम्हारी नगरपालिका का अंतिम खंभा हूं. मेरे आगे तो घोर अंधेरा और वीरान इलाका फैला हुआ है. जहां झींगुरों और जंगली जानवरों की अजीब-अजीब आवाजें सुनाई देती हैं.’
दूसरे खंभे ने जवाब दिया‘क्या बताऊं दोस्त, सारे दिन के शोर से मैं तो तंग आ गया हूं. कई नशेबाजों की कारें मुझसे टकराई हैं. गश्ती सिपाही बेमतलब मुझे डंडा मार-मारकर ठेली वह रिक्शेवालों को एक तरफ हटने की चेतावनी देते रहते हैं. कई आवारा कुत्ते मेरी जड़ में मूत जाते हैं. शाम के समय लड़कियां और औरतें सामने वाले ठेले से चाट के पत्ते लाकर बातें करती हुई खाती हैं और पत्ते मेरी जड़ मैं फेंक देती हैं, जबकि इस काम के लिए कूड़ेदान लगा हुआ है. और इन पाने खाने वालों के मुंह में आग लगे, जो भी मेरे पास से गुजरता है, पिच्च से मुझपर थूक देता है. दोस्त सैकड़ों दुख हैं, क्या-क्या गिनवाऊं!’
आखिरी खंभे को पहली बार महसूस हुआ कि शहर के खंभे से कितना सुखी है. तभी उसे अपने नीचे खुसर-पुसर की आवाज सुनाई दी. शायद बल्ब बदलने वाले आए हैं. उसे समझते देर नहीं लगी कि इस बार नगर में कोई बड़ा आदमी आने वाला है या चुनाव का चक्कर चलेगा, वरना शहर के इस आखिरी खंभे को कौन पूछता है!’
प्रस्तुति : विनायक
कदम-कदम पर हादसे’ से

Friday, October 22, 2010

जगदीश कश्यप: लघुकथा साहित्य का आदि विद्रोही

(हिंदी लघुकथा के प्रवर्तक एवं आदि विद्रोही जगदीश कश्यप पर यह आलेख उनकी पुस्तक ‘कदम-कदम पर हादसे’ के लिए लिखा गया था. इसके लेखक भगीरथ न केवल सुप्रतिष्ठित लघुकथाकार हैं, बल्कि लघुकथा आंदोलन के साक्षी और सहधर्मी रहे हैं. यह आलेख जगदीश कश्यप के विद्रोही व्यक्तित्व को दर्शाता है.)

जगदीश कश्यप उन चंद लेखकों में से हैं, जिन्होंने लघुकथा को नई प्रतिष्ठा दी. आठवें दशक के प्रारंभ में मिनी युग के माध्यम से उन्होंने लघुकथा साहित्य की सेवा की. ‘छोटी-बड़ी बातें’ लघुकथा संकलन की पहली पुस्तक का संपादन भार भी इन्होंने संभाला, जो आज भी सराहा जाता है. तब से वे कुछ अंतराल को छोड़ लगातार साहित्य की सेवा में जुटे हैं.

आइए जरा उनके लघुकथा लेखन की भी जांच कर लें. इनकी लघुकथाओं के कथ्य अधिकतर विपन्नता, बेरोजगारी और अपमानजनक जीवन की त्रासदियों से लदे पड़े हैं. इनकी रचनाओं में आक्रोश बराबर फूटा है और वे परिस्थितियों से समझौता नहीं कर पाते. उनकी रीढ़ की हड्डी फिर सीधी हो जाती है. इनके पात्र व्यवस्था की विसंगतियों में फंसे, अभावों और अपमान को झेल रहे हैं. अभावों के कारण अपनी आत्माओं पर बोझ बढ़ा दिया है. इनके पात्रों में उस बोझ को कम करने के लिए आक्रोश फूट पड़ता है, जरूरी नहीं कि उसकी कोई दिशा हो. लेकिन आखिर पात्र, जो उनकी सामाजिक आर्थिक एवं शैक्षणिक स्थिति है, समाज में वे दिशा देने के लिए बेचैन रहते हैं. इसलिए वे आक्रोश में उबल पड़ते हैं. कभी-कभी अपने आप पर भी उबल पड़ते हैं और इस जोशो-खरोश में कभी-कभी टूट भी जाते हैं. और तब समझौता करते प्रतीत होते हैं.

प्रारंभिक रचनाओं जिसमें रूपकों का इस्तेमाल हुआ है, जिब्रान की शैली से प्रभावित हैं. गूढ़ कथ्य के लिए तो जिब्रान की शैली सर्वोत्तम है. जिब्रान के माध्यम से ही लघुकथा नवप्रतिष्ठित हुई है और उससे मैं भी प्रभावित रहा हूं. इसी के माध्यम से उसने ‘मिनीयुग’ एवं ‘यूएसएम पत्रिका’ का जिब्रान अंक निकाला जो अपने आप में एक ग्रंथ है. जिब्रान लेखकों को केवल शैली के स्तर पर ह नहीं, वरन कथ्य के स्तर पर भी प्रभावित करता है. वह विद्रोही स्वरों का देवता है. वह जड़ताओं और रूढ़ियों को तोड़ने वाला आदि-व्रिदोही है. जगदीश कश्यप को मैं लघुकथा साहित्य का आदि-व्रिदोही मानता हूं.

भगीरथ

प्रस्तुति विनायक
कदम-कदम पर हादसे’ से

Tuesday, October 19, 2010

सहधर्मी

उसने मेरी ओर कृतज्ञता की दृष्टि से देखा, ‘साब, अगर आप न बचाते तो ये भीड़ मुझे पिलपिला बना देती. आप सोचिए, मैं बाल-बच्चों वाला आदमी भला जेब कैसे काट सकता हूं!’
उसने होंठ पर लगे खून को उंगली से पोंछते हुए कहा‘आप मेरे साथ एक कप चाय नहीं पियेंगे?’
मैं उसके अनुरोध को टाल न सका.
चाय के दौरान उसने बताया कि उसकी पत्नी असफलता अत्यंत पतिव्रता है. उसकी तीनों लड़कियां-कुंठा, निराशा, भग्नाशा जवान हो गई हैं और दुर्भाग्य नामक लड़का ग्रेजुएट होने पर भी बेरोजगार है.
मुझे आश्चर्य हुआ कि वह हू--हू मेरी ही कहानी सुना रहा था.

प्रस्तुति : विनायक
कदम-कदम पर हादसे’ से

Monday, October 18, 2010

जगदीश कश्यप की लघुकथाएं: देहरी भई बिदेस

जगदीश कश्यप की लघुकथाएं: देहरी भई बिदेस: "चांदनी रात में ठंडी रेत पर देशी खेलों में भाग ले रहे विदेशी कितने भले लग रहे थे. जैसलमेर के विशाल रेगिस्तान में स्वर्गिक आनंद वह क्यों नहीं..."

देहरी भई बिदेस

चांदनी रात में ठंडी रेत पर देशी खेलों में भाग ले रहे विदेशी कितने भले लग रहे थे. जैसलमेर के विशाल रेगिस्तान में स्वर्गिक आनंद वह क्यों नहीं लूट सकता. हजारों-हजारों किलोमीटर दूर से आए विदेशी लोग रस्सा खेंच, पगड़ी बांध प्रतियोगिता व ऊंट दौड़ में सहभागीदार बन रहे थे.
उसने एक ठंडी सांस ली और टीवी पर आ रहे जैसलमेर के इस प्रोग्राम को छत पर चला गया. चारों तरफ चांदनी बिखरी पड़ी थी. उसे लगा कि ओस-भरी ठंड के कारण फुरफुरी-सी उठने लगी थी उसमें. क्यों खामख्वाह छत पर आ गया. छत पर आना ही था, वरना वह बच्चे फिर जिद करेंगे....पापा इस बार हमें जैसलमेर जरूर ले जाना....किराये में गजब की वृद्धि हुई हैइस बीच. अब वह बच्चों को कैसे समझाये कि राजस्थान में रहते हुए भी जैसलमेर पहुंचने में दस-बारह घंटे लगेंगे.
अठै ठंड मैं के कर रया है?’ रिटायर पिता ने खांसते हुए पूछा तो वह बोला
बस बाऊजी, जरा जी मितला रहा था.’
उसने अंदाजा लगाया कि पिता जरूर अपनी दवाई के बारे में पूछेंगे. अतः वह स्वतः ही बोल पड़ा‘वो आपकी दवाई मैं आफिस में ही भूल आया था....’ उसे लगा कि वह सरासर झूठ बोल रहा था.
दवाई आ जावैगी, म्हारे देस रा घणा नीक परोगराम आ रया है....चल देख...!’
उसने एक क्षण को देखा, पिता के मुरझाये चेहरे पर एक अपूर्व शांति-सी झलक रही थी. अपनी धरती के दृश्य आदमी को कितनी खुशी दे जाते हैं, उसने सोचा. वह पिता को इस बार जरूर जैसलमेर ले जाएगा. चाहे जी पी फंड से पैसा क्यों न निकालना पड़े. नहीं-नहीं, ऐसा कैसे हो सकता....जी पी फंड का पैसा अंट-शंट कामों के लिए निकालेगा तो लड़की की शादी के वक्त क्या करेगा!

प्रस्तुति : विनायक
कदम-कदम पर हादसे’ से

Thursday, October 14, 2010

जगदीश कश्यप की लघुकथाएं: पूत-कपूत

जगदीश कश्यप की लघुकथाएं: पूत-कपूत: "सुबह जब वह आंगन में नल पर हाथ धो रहा था तो उसके पिता बड़बड़ाए—‘सारी दुनिया ही हरामखोर हो गई है. क्या जमाना आ गया है—लड़कियां सर्विस करें और ..."

सुकन्या

मगन भाई को उबकाई आने लगी. वह पत्नी से कुछ जरूरी काम कहकर उठ लिए और प्रेक्षाग्रह से बाहर आ गए.क्या वास्तव में ही उनकी लजीली लड़की इतनी समझदार हो गई है. इससे तो अच्छा था वह नाटक देखने ही न आते. उन्हें वैसे भी नाटकों में रुचि नहीं रही. पत्नी बोली थी
हमारी सुकन्या का आज प्रोग्राम है. तुम्हें चलना पड़ेगा वरना बेटी का दिल टूट जाएगा.’
बेटी की खातिर उन्होंने हामी भर दी थी.
उन्हें बताया गया था कि सुकन्या सीता का रोल करेगी....नाटक का नाम क्या था....हां याद आया....आज की सीता. ये नाटक क्या था, सरासर सीता का अपमान थाथू! मगन भाई का मुंह कसैला हो गया. आखिर सुकन्या को ऐसा रोल करने की जरूरत क्या थी? चलो क्रांति बारोठिया के यहां चलकर उसके गम में शरीक हो लिया जाए. क्रांति भाई की लड़की....खेल-कूद में अव्वल आने वाली रेणुका....अभी उसको मरे हुए एक हफ्ता भी नहीं गुजरा है....शादी के बाद बेचारी का खेल-कूद सब छूट गया. ससुराल में अपनी सेवा से सबको खुश रखती थी, फिर भी जालिमों ने दहेज के लालच में अकाल मौत दे दी उसे.
नहीं-नहीं, मैं ऐसे घर में अपनी सुकन्या को नहीं ब्याहूंगा.’ मगन भाई को सुकन्या का वह डायलाग याद आने लगा‘मैं वो सीता नहीं जो अपनी पवित्रता का बार-बार प्रमाण देगीसासूजी! मैं अब अपने पैरों पर खड़ी हूं....’
मगन भाई उल्टे पैरों लौट पड़े और प्रेक्षाग्रह में जाकर पत्नी के पास बैठ गए.
प्रस्तुति: विनायक
कदम-कदम पर हादसे’ से

Wednesday, October 13, 2010

पूत-कपूत

सुबह जब वह आंगन में नल पर हाथ धो रहा था तो उसके पिता बड़बड़ाए‘सारी दुनिया ही हरामखोर हो गई है. क्या जमाना आ गया हैलड़कियां सर्विस करें और भाई शर्म और बदनामी भरे काम करे....लड़कियों को छेड़ेंगे...प्रेम करेंगे.’
और घृणा से सिगरेट का टोटा फेंककर पाखाने में घुस गए.
वह तेजी से सीढ़ियां चढ़ गया और पलंग पर बैठकर हांफने लगा. उसे क्या करना चाहिए....कहां जाना चाहिए? पिता उसकी प्रेमिका को लेकर इतने उत्तेजित थे कि....
वह बड़बड़ाता हुआ नीचे उतरा और तीर की तरह निकल गया.
रवि के नाम पिता ने डाकिये से लिफाफा ले लिया. यह चिट्ठी थी.
हूं....प्रेमपत्र होगा कोई!’ घृणा से उन्होंने पत्र फाड़ डाला और जल्दी-जल्दी पढ़ने लगे‘प्रिय महोदय! आपको बधाई. कहानी प्रतियोगिता में आपकी कहानी को प्रथम पुरस्कार मिला है. इस राशि का चैक संलग्न है. कृपया संलग्न बाउचर भरकर हमें भेज दें.’
प्रबंध संपादक
क्यों जी तुमको क्या हुआ?’ रवि की मां ने पति का उतरा हुआ चेहरा देखकर पूछा.
कुछ नहीं.’ उन्होंने एक बार फिर एक हजार रुपये की राशि के चैक को देखा‘ये रवि को दे देना.’
पत्नी को आश्चर्य हुआ कि इस बार पत्र पढ़कर उन्होंने रवि के लिए हरामखोर शब्द का उच्चारण क्यों नहीं किया!
प्रस्तुति: विनायक
कदम-कदम पर हादसे’ से







Tuesday, October 12, 2010

थर्मस

रुपये जेब में आते ही मैं बैंक वाले दोस्त की उपेक्षा और घटियापन वाली कड़बड़ाहट भूल गया था. मैंने उसे आश्वस्त कर दिया था कि मेरी ताजा छपी कहानी के पैसे आने ही वाले हैं. यद्यपि दोस्त को मेरी इस बात पर ज्यादा यकीन नहीं आया पर उसने हिदायत दी कि मैं लेखन के चक्कर में न पड़कर कोई एग्जाम क्वालीफाई करूं और मैंने इस संबंध में आश्वासन भी दे दिया था.
मैं किसी तरह जनरल स्टोर पहुंचकर थर्मस खरीद लेना चाहता था. मेरे दिमाग में यह भी था कि कोई अच्छी पिक्चर देखी जाए और किसी अच्छे रेस्तरां में बैठकर लजीज भोजन का आनंद लूं. वैसे भी थर्मस खरीदना मेरी जिम्मेदारी नहीं थी. किसी के घर की परेशानी से मुझे क्या लेना-देना! अलबत्ता पचास रुपये मैंने थर्मस खरीदने के लिए ही उधार लिए थे. दोस्त के तीन माह के बच्चे को रात-बिरात दूध चाहिए ही. एक दिन हड़बड़ी में दोस्त की पत्नी के हाथ से थर्मस फिसल गया था और अंदर का कांच चटख गया था.
अब मेरे कदम सिनेमा की ओर बढ़ रहे थे. अचानक मेरे सामने जनरल स्टोर की दुकान आ गई और मैं उसमें घुस गया. जब मैं बाहर निकला तो मेरे हाथ में 98 रुपये 50 पैसे वाली रसीद और सुंदर थर्मस का डिब्बा था. मैं बहुत ही भावुक हो उठा. थर्मस पाकर दोस्त की पत्नी आंसू निकाल लेगी और कहेगी---‘भाई साहब, आप हमारे बारे में इतना सोच रहे हैं. इस मुश्किल काम में हर कोई हमारा साथ छोड़ गया.’
भाभीजी, भगवान से प्रार्थना करो कि मैं आपके किसी काम आ सकूं. अभी तो मैं तीन वर्ष से बेरोजगारी भोग रहा हूं.’ मैंने धीरे-से दरवाजा खटखटाया. मायूस अंदाज में भाभी जी ने दरवाजा खोला. मैं अंदर दाखिल होते ही बोला‘रवि कहां चला गया?’
पता नहीं, काफी देर हो गई गए हुए. क्या काम है?’
कुछ नहीं मैंने थर्मस के फीते को ऊंचा उठाते हुए कहा‘यह रवि ने भेजा है, थर्मस है.’
भाभी मेरी बात सुनकर बुरी तरह चौंक गई. उसने बेइत्मिनानी से मेरी ओर देखा और सामने मेज की ओर उंगली से संकेत करते हुए कहा‘पर थर्मस तो वो दोपहर को ही खरीद लाए थे. दूसरा थर्मस उन्होंने क्यों भेजा है?’
प्रस्तुति: विनायक
कदम-कदम पर हादसे’ से

Monday, October 11, 2010

दुर्गा पूजा

अमिय बाबू? इस बार कितने पर हाथ साफ करने का इरादा है?’ गांगुली ने चाय की चुस्की लेते हुए पूछा तो अमिय चटर्जी को गुस्सा आ गया.
गांगुली, होष की बात कर! मेरी समझ में नहीं आता कि तू नास्तिक होते हुए दुर्गा पूजा में इतनी रुचि क्यों रखता है?’
साब, अर्थ का सवाल अमिय बाबू!’ और चुटकी बजा दी
ये जो वामपंथी सरकार हम लोगों को प्रतिमाह बेरोजगार भत्ता देती है ना, साला ये चायवाला एक ही दिन में हड़प लेता है.’
चाय वाला जानता है कि इन बेरोजगार युवकों को न तो सरकार से लोन लेकर अपना छोटा-मोटा धंधा चलाने में कोई रुचि है और न ही ये कोई प्रषिक्षण प्राप्त करना चाहते हैं. बस पूरी दिनचर्या अंतरराष्ट्रीय राजनीति पर बहस करने में खर्च कर देते हैं.
चल अमिय, देखते हैं मां दुर्गा की प्रतिमा कैसी बनी है!’
चलते-चलते अमिय ने कहा, ‘बंधु, हम मां दुर्गा के नाम पर लोगों को तंग करके चंदा क्यों उगाहते हैं?’
अरे छोड़ यार, तेरे-मेरे घर की हालत सरकार तो सही कर नहीं देगी. मां दुर्गा के लिए हम लोग ये सब करते हैं. ये धन्ना सेठ कौन अपनी जेब से चंदा देते हैं...सब नंबर दो का पैसा है. आखिर मां-बाप के प्रति हमारा भी तो कुछ कर्तव्य है. चंदा उगाही से जो कुछ दुर्गा पूजा का आयोजन करते हैं, उसमें से अपनी मेहनत का कुछ बचा लिया तो कौन-सा पाप करते हैं. मां-पिता के लिए नई धोती और कुर्ता का ही तो जुगाड़ हो पाता है. काश! दुर्गा पूजा का उत्सव सारे साल चले.’
अमिय ने देखा, मां की प्रतिमा क्रोध-भरी आंखों से घूर रही थी. उसका दिल धक-धक करने लगा. गांगुली न जाने क्या-क्या कहता रहा, उसे बिलकुल समझ नहीं आया.
प्रस्तुति: विनायक
कदम-कदम पर हादसे’ से