Wednesday, October 13, 2010

पूत-कपूत

सुबह जब वह आंगन में नल पर हाथ धो रहा था तो उसके पिता बड़बड़ाए‘सारी दुनिया ही हरामखोर हो गई है. क्या जमाना आ गया हैलड़कियां सर्विस करें और भाई शर्म और बदनामी भरे काम करे....लड़कियों को छेड़ेंगे...प्रेम करेंगे.’
और घृणा से सिगरेट का टोटा फेंककर पाखाने में घुस गए.
वह तेजी से सीढ़ियां चढ़ गया और पलंग पर बैठकर हांफने लगा. उसे क्या करना चाहिए....कहां जाना चाहिए? पिता उसकी प्रेमिका को लेकर इतने उत्तेजित थे कि....
वह बड़बड़ाता हुआ नीचे उतरा और तीर की तरह निकल गया.
रवि के नाम पिता ने डाकिये से लिफाफा ले लिया. यह चिट्ठी थी.
हूं....प्रेमपत्र होगा कोई!’ घृणा से उन्होंने पत्र फाड़ डाला और जल्दी-जल्दी पढ़ने लगे‘प्रिय महोदय! आपको बधाई. कहानी प्रतियोगिता में आपकी कहानी को प्रथम पुरस्कार मिला है. इस राशि का चैक संलग्न है. कृपया संलग्न बाउचर भरकर हमें भेज दें.’
प्रबंध संपादक
क्यों जी तुमको क्या हुआ?’ रवि की मां ने पति का उतरा हुआ चेहरा देखकर पूछा.
कुछ नहीं.’ उन्होंने एक बार फिर एक हजार रुपये की राशि के चैक को देखा‘ये रवि को दे देना.’
पत्नी को आश्चर्य हुआ कि इस बार पत्र पढ़कर उन्होंने रवि के लिए हरामखोर शब्द का उच्चारण क्यों नहीं किया!
प्रस्तुति: विनायक
कदम-कदम पर हादसे’ से







2 comments:

  1. पैसा हर किसी को चुप करा देता है।

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  2. बच्चों के टैलेंट को नज़रंदाज़ नहीं करना चाहिए ...हर समय कही गयी ऐसी बातें बच्चों को बागी बना देती हैं ..

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