ममत्व


जब स्थिति ज्यादा बिगड़ गई तो पुलिस और प्रशासन की मदद के लिए सेना बुला ली गई. फैशनेबल बाजारों में मुर्दापन और गली-मुहल्लों में टोपधारी सशस्त्र वर्दियां नजर आ रही थीं.
किशना की मां बच्चे के दूध के लिए तड़फ रही थी. उसे पता नहीं था कि उसका मिस्त्री पति इन दंगों में मारा गया है या कहीं मुसीबत में फंस गया है.
जवान लड़की किशना को मां ने सख्त हिदायत दे रखी थी कि वह खिड़की न खोले. कहीं ऐसा न हो कि वह किसी बहशी की नजर में आ जाए और उसकी इज्जत पर डाका पड़ जाए.
मां दस्त से परेशान थी. बच्चे गर्म मानी, कभी उबली खा-खाकर परेशान हो गए थे. दोनों समय का आटा जरूरत से कम मांडा जाता, पता नहीं कर्फ्यू कब खुले.
किशना की मां के पेट में फिर मरोड़ उठा.
ले किशना, जरा बबलू को पकड़. मरे ये लोग दंगा क्यों करते हैं. इनका सत्यानाश हो.’ और वह धोती संभालती हुई पाखाने की ओर भागी. बच्चा बुरी तरह डकरा रहा था.
जब वह लौटी तो उसने एक अविश्वसनीय दृश्य देखा. उसकी जवान अविवाहिता किशना बच्चे को शायद स्तनपान कराने का प्रयास कर रही थी.
प्रस्तुति: विनायक
लघुकथा संग्रह ‘कदम—कदम पर हादसे’ से