Friday, October 8, 2010

अपराधबोध

उसने घड़ी पर नजर मारी तो बेचैन हो गया. अब तो सेमीनार का दूसरा सत्र भी शुरू हो चुका होगा. उसने टैक्सी से जाने की सोची तो निराश हो गया. जेब में कुल दो का नोट और अठन्नी बाकी थी. सेमिनार अटेंड किए बिना तो उसे आने-जाने का किराया भी नहीं मिलेगा. वह और बेचैन नहीं होना चाहता था अतः पास खड़ी युवती से पूछ ही लिया. वह और लापरवाही से बोली—
भई तुम कैसा आदमी है. अब्बी-अब्बी दो बस निकल गया....उधर पीछे लाइन में खड़ा क्यों नहीं होता?’ वह मंत्रमुग्ध-सा एक वृद्ध के पीछे जाकर खड़ा हो गया और धीरे-से पूछा कि अंधेरी के लिए बस कब मिलेगी.
मैं उधर ही जा रहा हूं. दिल्ली से आए हो?’
जी, ऐसा ही समझिए. मुबंई पहली बार आया हूं. किसी ने पाकेट मार ली.’
यह सुनते ही बूढ़े ने अपनी पैंट की जेबों पर हाथ फिराया और चश्मे से घूरकर उसे देख कुछ बड़बड़ाना शुरू कर दिया.
उसने जेब से लिफाफा निकाला और बोला—‘श्रीमान, इस जगह प्रोग्राम है. एक जगह डिरेलमेंट होने के कारण गाड़ी पूरे सात घंटे लेट आई है. वरना प्रोग्राम वाले स्टेशन पर ही मिल जाते.’
तभी बस आती दिखाई दी. सभी लोग सतर्क हो गए. बूढ़े का नंबर आया तो कंडक्टर बोला—‘आॅनली एक आदमी का सीट है.’
बूढ़े ने पलटकर उसका हाथ पकड़ा और उसे बस में चढ़ा दिया. वह बूढ़े का धन्यवाद भी नहीं कर पाया. सीट पर बैठते ही उसे बूढ़े की बड़बड़ाहट समझ आने लगी. शायद बूढ़ा कह रहा था—‘ये साले जेबकतरे महाराष्ट्र का नाम बदनाम करते हैं....’
प्रस्तुति : विनायक
'कदम-कदम पर हादसे' से

2 comments:

  1. This comment has been removed by the author.

    ReplyDelete
  2. या देवी सर्वभूतेषु शक्तिरूपेण संस्थिता ! नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:!!

    नवरात्रि पर्व की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं...

    कृपया ग्राम चौपाल में आज पढ़े ------
    "चम्पेश्वर महादेव तथा महाप्रभु वल्लभाचार्य का प्राकट्य स्थल चंपारण"

    ReplyDelete