Monday, October 18, 2010

देहरी भई बिदेस

चांदनी रात में ठंडी रेत पर देशी खेलों में भाग ले रहे विदेशी कितने भले लग रहे थे. जैसलमेर के विशाल रेगिस्तान में स्वर्गिक आनंद वह क्यों नहीं लूट सकता. हजारों-हजारों किलोमीटर दूर से आए विदेशी लोग रस्सा खेंच, पगड़ी बांध प्रतियोगिता व ऊंट दौड़ में सहभागीदार बन रहे थे.
उसने एक ठंडी सांस ली और टीवी पर आ रहे जैसलमेर के इस प्रोग्राम को छत पर चला गया. चारों तरफ चांदनी बिखरी पड़ी थी. उसे लगा कि ओस-भरी ठंड के कारण फुरफुरी-सी उठने लगी थी उसमें. क्यों खामख्वाह छत पर आ गया. छत पर आना ही था, वरना वह बच्चे फिर जिद करेंगे....पापा इस बार हमें जैसलमेर जरूर ले जाना....किराये में गजब की वृद्धि हुई हैइस बीच. अब वह बच्चों को कैसे समझाये कि राजस्थान में रहते हुए भी जैसलमेर पहुंचने में दस-बारह घंटे लगेंगे.
अठै ठंड मैं के कर रया है?’ रिटायर पिता ने खांसते हुए पूछा तो वह बोला
बस बाऊजी, जरा जी मितला रहा था.’
उसने अंदाजा लगाया कि पिता जरूर अपनी दवाई के बारे में पूछेंगे. अतः वह स्वतः ही बोल पड़ा‘वो आपकी दवाई मैं आफिस में ही भूल आया था....’ उसे लगा कि वह सरासर झूठ बोल रहा था.
दवाई आ जावैगी, म्हारे देस रा घणा नीक परोगराम आ रया है....चल देख...!’
उसने एक क्षण को देखा, पिता के मुरझाये चेहरे पर एक अपूर्व शांति-सी झलक रही थी. अपनी धरती के दृश्य आदमी को कितनी खुशी दे जाते हैं, उसने सोचा. वह पिता को इस बार जरूर जैसलमेर ले जाएगा. चाहे जी पी फंड से पैसा क्यों न निकालना पड़े. नहीं-नहीं, ऐसा कैसे हो सकता....जी पी फंड का पैसा अंट-शंट कामों के लिए निकालेगा तो लड़की की शादी के वक्त क्या करेगा!

प्रस्तुति : विनायक
कदम-कदम पर हादसे’ से

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