Thursday, October 14, 2010

सुकन्या

मगन भाई को उबकाई आने लगी. वह पत्नी से कुछ जरूरी काम कहकर उठ लिए और प्रेक्षाग्रह से बाहर आ गए.क्या वास्तव में ही उनकी लजीली लड़की इतनी समझदार हो गई है. इससे तो अच्छा था वह नाटक देखने ही न आते. उन्हें वैसे भी नाटकों में रुचि नहीं रही. पत्नी बोली थी
हमारी सुकन्या का आज प्रोग्राम है. तुम्हें चलना पड़ेगा वरना बेटी का दिल टूट जाएगा.’
बेटी की खातिर उन्होंने हामी भर दी थी.
उन्हें बताया गया था कि सुकन्या सीता का रोल करेगी....नाटक का नाम क्या था....हां याद आया....आज की सीता. ये नाटक क्या था, सरासर सीता का अपमान थाथू! मगन भाई का मुंह कसैला हो गया. आखिर सुकन्या को ऐसा रोल करने की जरूरत क्या थी? चलो क्रांति बारोठिया के यहां चलकर उसके गम में शरीक हो लिया जाए. क्रांति भाई की लड़की....खेल-कूद में अव्वल आने वाली रेणुका....अभी उसको मरे हुए एक हफ्ता भी नहीं गुजरा है....शादी के बाद बेचारी का खेल-कूद सब छूट गया. ससुराल में अपनी सेवा से सबको खुश रखती थी, फिर भी जालिमों ने दहेज के लालच में अकाल मौत दे दी उसे.
नहीं-नहीं, मैं ऐसे घर में अपनी सुकन्या को नहीं ब्याहूंगा.’ मगन भाई को सुकन्या का वह डायलाग याद आने लगा‘मैं वो सीता नहीं जो अपनी पवित्रता का बार-बार प्रमाण देगीसासूजी! मैं अब अपने पैरों पर खड़ी हूं....’
मगन भाई उल्टे पैरों लौट पड़े और प्रेक्षाग्रह में जाकर पत्नी के पास बैठ गए.
प्रस्तुति: विनायक
कदम-कदम पर हादसे’ से

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