दरबान ने आकर बताया कि कोई फरियादी उनसे जरूर मिलना चाहता है. उन्होंने मेहरबानी करके उसे भीतर बुलवा लिया. फरियादी झिझकता-झिझकता उनके दरबार में पेश हुआ, वे चौंक पड़े. उन्हें आश्चर्य हुआ कि वह वहां कैसे आ गया! फिर यह सोचकर कि उन्हें भ्रम हुआ है, उन्होंने पूछ लिया—‘कौन हो?’
‘मैं वही गरीबदास हूं सरकार!’
‘गरीबदास, तुम! तुम्हें तो मैंने दफन करवा दिया था!’
‘भूखे पेट रहा नहीं गया माई-बाप, इसलिए उठकर चला आया.’
‘अब क्या चाहते हो?’
‘कुछ खाने को मिल जाए हुजूर!’
‘अभी देता हूं.’ उसे आश्वासन देकर उन्होंने सामने दीवार पर टंगी अपनी दुनाली उतार ली.
‘यह लो खाओ!’ दुनाली ने दो बार आग उगल दी. गरीबदास वहीं ढेर हो गया.
‘दरबान, इसे ले जाकर दफना दो. इस कमीने ने तो तंग ही कर दिया है.’
दूसरे दिन जब वह गरीबी उन्मूलन के प्रारूप को अंतिम रूप दे रहे थे, तो दरबान हड़बड़ाया हुआ-सा कमरे में आ घुसा. उसकी घिग्गी बंधी हुई थी.
‘मरे क्यों जा रहे हो?’ उन्होंने डांटा.
‘हुजूर-हुजूर!’ दरबान ने भयभीत आंखों से बाहर द्वार की ओर संकेत करते हुए कहा—
‘वही फरियादी फिर आ पहुंचा है!’
प्रस्तुति: विनायक
लघुकथा संग्रह ‘कदम—कदम पर हादसे’ से
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