‘सुनो, रमेश रात की गाड़ी से गांव जाने की बात कह रहा है.’ इस पर पति ने एकबारगी चौंककर देखा-पत्नी का चेहरा बुझा हुआ था.
‘तुमने समझाया नहीं इसे?’ और गुस्से से फाइल मेज पर पटक वह टाई की ना॓ट खोलने लगा.
‘अब उसे कितना और समझाऊं? कितने बहाने करूं? तुम उसे वर्कचार्ज में ही एडजस्ट कर देते तो इसी बहाने वह यहां पड़ा रहता. आखिर तुम्हारा छोटा भाई है.’
अब वह पत्नी को कैसे समझाए कि उसका पति नाममात्र का इंजीनियर है या ए.ई.. एक्सीएन(अधिशासी अभियंता) ने अपने गांववालों को कितनी जल्दी एडजस्ट करा दिया.
‘सविता तुम नहीं समझोगी हमारे आफिस की राजनीति. ये रमेश का बच्चा हाईस्कूल कर लेता तो मैं एक्सीएन की खुशामद कर लेता. अब चपरासी तो मैं इसे लगवाने का नहीं.’ उसे लगा कि वह सरासर झूठ बोल रहा था.
यह सब सुनने से पूर्व पत्नी उठकर रसोई में जा चुकी थी. जब लौटी तो उसके हाथ में चाय का कप था. पति का चाय का कप थमाते हुए बोली, ‘बुरा मत मानना, कहो तो रमेश के लिए अपने आफिस में ट्राई करूं?;
इतने में रमेश पिंटू को कंधे पर बैठाए आ गया और बोला—‘भाभी, रात साढ़े दस बजे की गाड़ी है, सुबह सात बजे तक पहुंचा देगी. मैं स्टेशन से मालूम कर आया हूं.’ यह कहते-कहते उसने वितृष्णा से भरी नजर से बड़े भइया की ओर देखा और पिंटू को भाभी की गोद में दे दिया.
अभी वह ऊपर दुछत्ती में घुस भी नहीं पाया था कि पिंटू के जोर-जोर से डकराने की आवाज उसके कानों में पड़ी. वह तेजी से नीचे उतरा. भैया पता नहीं क्यों पिंटू के गाल पर थप्पड़ जड़े रहे थे. उसने लपक कर पिंटू को उठा लिया और बड़बड़ाने लगा-
‘कैसे राक्षस हैं ये लोग, मत रो पिंटू बेटे. मेरे बाद तो तेरी क्या हालत कर देंगे.’ और सीढ़ियां चढ़ता हुआ जोर से चिल्लाया—‘भाभी, कान खोल कर सुन लो, आखिरी बार कह रहा हूं. अगर अगले महीने तक भैया ने नौकरी नहीं लगवाई तो मैं गांव मां के पास चला जाऊंगा.’
भाभी-भैया मुस्करा उठे. यह वाक्य तो पिछले एक साल से रमेश के मुंह से सुनते आ रहे हैं.
प्रस्तुति: विनायक
‘कदम-कदम पर हादसे’ से
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