वे मुख्यमंत्री के साथ दिल्ली आए थे. उन्होंने मुख्यमंत्री से अपने क्षेत्र का अचानक दौरा करने के लिए इजाजत ली थी. उन्हें नहीं मालूम था कि उनका कार्यक्रम इतना व्यस्त हो जाएगा और पल-भर भी चैन नहीं मिलेगा.
‘मैंने कहा, ‘उठो साहब!’ उपमंत्री को झंझोड़ा गया तो उन्होंने मिचमिचाती आंखों से क्रोध भरकर देखा कि भीड़ का एक रेला उसके कमरे में विद्यमान था. कुछ लोग हाथ जोड़े हुए थे. उपमंत्री तुरंत ही चेहरे पर सौम्यता लाए और बोले-‘कहो भई मधुकर, कैसे हो?’ तुम कल दिखाई नहीं दिए?’
मधुकर स्थानीय अखबार का रिपोर्टर था और उसने अपने दोस्त को जिताने में ऐड़ी-चोटी का जोर लगा दिया था. मधुकर बोला-मैं बाद में पहले इन लोगों की फरियाद सुनो. नगर प्रशासन ने इन लोगों के घर यह कहकर गिरा दिए थे कि वे नगरपालिका की जमीन पर बने थे. अब बताओ, ये लोग कहां जाएं?’
उपमुख्यमंत्री यह सुनते ही रोष में आ गए और सैक्रेटरी को बुलाकर फोन मिलाया. चैयरमेन को फोन पर बुरा-भला हो. इसी प्रकार परगनाधिकारी से भी बातचीत की.
‘आप लोग जाएं. मैंने बात कर ली है. मैं इस केस को पूरी तरह देखूंगा.’ गरीब मजदूर जी-हुजूर माई-बाप कहते हुए चले गए.
‘कहो मधुकर, कैसा चल रहा है?’
तभी सेक्रेटरी ने बीच में आकर कहा—‘चीफ मिनिस्टर जी आपसे बात करना चाहते हैं.’ उपमुख्यमंत्री ने चोगा कान से लगाकर कहा—‘यस सर!’
उधर से कुछ कहा गया तो उपमंत्री विशेष अंदाज में सावधान हो गए और बोले—‘मैं अभी रवाना हो रहा हूं. सारी सर, वेरी सारी यहां लोगों के घर गिरा दिए गए थे, उसी सिलसिले में फंस गया था...यस...यस सर, नहीं मैं इस मामले में नहीं पड़ना चाहता. अवैद्य निर्माण होंगे तो गिरेंगे ही. इसमें ह कर क्या सकते हैं...डांट वरी सर, मैं अभी रवाना हो रहा हूं.’
उपमंत्री ने हड़बड़ी वाले अंदाज में मधुकर की ओर देखा—‘अच्छा मित्र! वैरी सारी, मैं तुमसे काफी बात करना चाहता था. आओ तुम मेरे साथ चलो, मैं तुम्हें बीच में ड्राप कर दूंगा.’
मधुकर घृणापूर्वक अपने लंगोटिया यार को घूर रहा था. उपमंत्री ने स्थिति की नाजुकता को भांपते हुए कहा-‘क्या अपने घर एक कप चाय नहीं पिलाओगे?’
मित्र की इस बात पर मधुकर ठगा-सा रह गया और प्रसन्नतापूर्वक बोला—‘अरे, क्यों नहीं.’
उपमंत्री के होठों पर रहस्यमयी मुस्कान उभर आई.
प्रस्तुति : विनायक
लेखनकाल लगभग 1980
No comments:
Post a Comment