रामेसरी ने गांव पाठशाला में पांचवी तो कर ली थी पर दादी ने उसे छह कोस दूर कस्बे के मिडिल स्कूल में नहीं जाने दिया. 14 साल की उम्र में उसके हाथ पीले कर दादी ने कहा—‘कौन जाने यू किसना बयाह लायक कब होयगो—चलो रामेसरी के हाथ पीले तो कर ही चली.’
अब इस गांव में न केवल मास्टर कालिज है, बल्कि कोआपरेटिव बैंक की शाखा भी है. छह कोस दूर कस्बे और गांव में पक्की सड़क बन जाने के कारण अंतर समाप्त हो गया है. वहीं खंड विकास अधिकारी, भूमि विकास बैंक तथा बीज निगम के शाखा कार्यालय हैं. रामेसरी की छोटी बहन किसना ने हाई स्कूल करके बीटीसी कर लिया और अब कन्या प्राथमिक पाठशाला में पढ़ा भी रही थी. अगर उसकी दादी जिंदा होती तो उसकी भी शादी हो गई होती. भला बीस साल तक कोई लड़की इस घर में कुंवारी रही है!
जब डाकिया ढेर सारी डाक कृष्णा देवी के नाम लाता तो गांववाले अचंभा करते, विशेषकर वे बेरोजगार लड़के जो ग्रेजुएट होकर वापिस आ गए थे और खेतों में जुटे थे. वे बड़े चाव से उन अखबारों/पत्रिकाओं को पढ़ते, जिनमें किसना की रचना छपी होती.
किसना, तू ऐसी रचनाएं क्यों लिखती है, जिनमें कोई मजा न हो?नए जमींदारों के अत्याचार, छोटे किसानों की कठिनाइयां, खंड विकास अधिकारी की धांधली और बड़े किसानों को कर्ज मिलने में आसानी....ये सब क्या है?’
‘तू समझता क्यों नहीं बिरजू! ये प्रेम-प्यार के किस्से तुझे क्या देंगे. कभी अपने बाप को देखा है, जिसने तुझे हसरत से पढ़ाया था. भूमि विकास बैंक ने तेरे घर को नोटिस भेजा है, क्या तू बर्दाश्त कर लेगा कि तेरे घर की कुर्की हो. क्या हुआ अगर किश्त अदा न की! कहां से दे? बाढ़ में सारी फसल मारी गई. जो फसल होती है उसे औने-पौने में खरीदा जाता है, जबकि सरकारी भाव कुछ और है! और इन नए जमींदारों ने तो आठ-आठ किश्तें अदा नहीं की हैं. उन्हें ये अधिकारी परेशान क्यों नहीं करते?’
बिरजू, अशोक, भैयाराम तथा अन्य किसान युवक किसना की बात को रोज-रोज मंत्र-मुग्ध होकर सुनते और जब घर लौटते तो उनमें बेचैनी भरी होती.
एक दिन गांव में पुलिस आई. उस समय किसना स्कूल में ही थी. यह इस गांव में असाधारण घटना थी कि पूछताछ के लिए जवान लड़की को शहर ले जाया जाए. अंग्रेजों के जमाने में भी पूछताछ होती थी, लेकिन तब औरत नहीं, आदमी ही सिपाहियों के साथ जाता था.
ग्राम प्रधान, स्थानीय नेता तथा बुजुर्ग ग्रामीणों ने अधिकारियों को समझाया कि किसना का बाप उसकी शादी के लिए बहुत परेशान है. उस लड़की का किसी राजनीतिक दल से कोई संबंध नहीं है. परंतु पुलिस अधिकारी का यह कहना था कि यह लड़की नक्सली है और गृहयुद्ध तथा सरकार पलटने की बात करती है. गांव की सीधी-सादी लड़की इतनी गहरी बातें कैसे लिख सकती है.
रामेसरी ने जब अपने पति से कहा कि वह अपने अधिकारियों से किसना को छुड़ाने की बावत बात करे तो वह बोला—‘मैं तो मामूली सिपाही हूं. मैंने थानेदार को हर तरह से यकीन भी दिलाया, लेकिन साहब चिढ़कर बोले—‘तो फिर उससे लिखवा दो कि भविष्य में ऐसे लेख नहीं लिखेगी और उसके लिए खेद व्यक्त करती है.’
‘फिर क्या हुआ?’ पति को चुप देख रामेसरी ने पूछा.
‘होना क्या है, ये किसना तो बहुत जिद्दी है. वह दुगुने उत्साह से कहने लगी कि अन्याय और गरीबों पर अन्याय के खिलाफ आवाज उठाकर मैं कोई गलत काम नहीं कर रही. छोटा किसान कब तक जुल्म सहता रहेगा. हर मार छोटे किसान पर होती है. उसे वक्त पर पानी नहीं मिलता, बीज नहीं मिलता, खाद नहीं मिलती. और ये नए जमीदरान मौज उड़ाते हैं. अब तू ही बता रामेसरी, उसे कैसे छुड़वाऊं?’
इस पर रामेसरी ने अंदाजे से कहा—‘जरूर ये भ्रष्ट अधिकारियों और प्रभावशाली बड़े किसानों के षड्यंत्र का फल है, ताकि उनकी पोल न खुल सके.’
तभी रामेसरी ने एक प्रकार का शोर सुना जो धीरे-धीरे स्पष्ट होता गया. बिरजू, अशोक, भैयाराम और अनेक युवक चिल्ला रहे थे—‘किसना को आजाद करो, बेईमान मुर्दाबाद! जब तक दम में दम है, अन्याय से टकराएंगे.....’
रामेसरी को यकीन हो गया कि इस गांव में जरूर कुछ होने वाला है.
प्रस्तुति: विनायक
यूएसएम पत्रिका, 1978
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