समुद्र से विदा लेकर बादलों का काफिला ऊपर उठा और अपने गंतव्य मार्ग की ओर बढ़ गया. पीछे छूट गया दो मील लंबा बादल गड़गड़ाया—
‘साथियो ठहरो, लोग हमारे लिए पूजा-पाठ, जप-तप कर रहे हैं. थोड़ा फालतू जल इनके खेतों पर क्यों नहीं बरसा देते?’
‘मूर्ख अभी हमें तीन हजार मील का सफर तय करना है, अगर समय पर नहीं पहुंच सके तो अपना वायदा पूरा नहीं कर सकेंगे. जल्दी दौड़कर आ.’
‘मेरे हृदयहीन भाइयो, यहां लोग पानी की एक-एक बूंद के लिए तरस रहे हैं, पशु प्यासे तड़फ रहे हैं—थोड़ा फालतू जल इनके खेतों में क्यों नहीं बरसा देते!’
‘हमारे भोले भाई!’ बादल-सरदार ने कहा—‘तू नहीं जानता, धरती का आदमी बड़ा काइयां है. इसने गैस-वैस के पानी-भरे बादल बनाने शुरू कर दिए हैं. हम भी देखते हैं ये इनकी कितनी प्यास बुझाते हैं. तू दौड़कर आता है या नहीं?’ और उसके उत्तर की परवाह किए बिना बादल सरदार ने अपनी चाल तेज कर दी.
अचानक छोटे-से बादल अपना जल धूप से जले खेतों, पपड़ी हो गई तलैयों एवं भभकते मकानों पर ठंडी बूंदों के रूप में गिराना शुरू कर दिया. लोग हर्ष-विभोर होकर नांचने लगे. घास के तिनके तेजी से हरे होने लगे.
दूसरे दिन अखबार में सुर्खी के साथ यह खबर छपी-क्रात्रिम वर्षा कराने के प्रयोग सफल.’ कुछ लोग कह रहे थे कि यज्ञ के कारण ही यह वर्षा हुई थी, जबकि कुछ लोगों का मत था कि इंद्र की विशेष प्रार्थना के कारण ही यह वर्षादान संभव हुआ है.
छोटा-सा बादल, जो आनंदमय होकर अपना अधिकांश जल लुटा चुका था, आदमियों की उक्त टिप्पणियों पर अचंभा व्यक्त कर रहा था. उसे विश्वास हो गया था कि आदमी वास्तव में ही काइयां है.
प्रस्तुति: विनायक
लघुकथा संग्रह ‘कदम—कदम पर हादसे’ से
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