जगदीश कश्यप की लुप्तप्रायः लघुकथा
एक दिन मिल-मालिक ने खून का घूंट पीकर मजदूर नेता को अपनी शानदार कोठी में आमंत्रित किया, जो पहले-पहल उसकी फैक्ट्री में क्लीनर के रूप में लगा था.
मिल मालिक ने उसे सोफे पर अपने साथ बैठाकर सफल हड़ताल के लिए उसके कंधे थपथपाए. नादान मजदूर नेता इसी पर गर्व से फूल उठा कि वह उस मिल मालिक की बगल में बैठा था. जबकि एक बार वही सेठ उसको कुत्ता कहकर दुत्कार चुका था.
फंसाने वाली खुशी में जाम टकराए. तभी एक चंचल लड़की मजदूर नेता के पास आई. मिल मालिक किसी बहाने उठा और चला गया. जब तक सेठ आया, मजदूर नेता उस नवयौवना के मोहमाया-जाल में फंस चुका था.
जब वह थक गया तो मिल मालिक घृणापूर्वक बोला—‘ये लो पांच हजार रुपये और हमेशा के लिए इस शहर से भाग जाओ, वरना तुम्हारे साथ इस नंगी लड़की का फोटो अखबार में छपवा दूंगा.’
दूसरे दिन गरीब मजदूरों ने उस नेता की धोखादड़ी की खबर सुनी तो दंग रह गए.
और छह महीने से बंद मिल अपनी पुरानी क्षमता के अनुसार फिर चलने लगी थी.
प्रस्तुति: विनायक
जगदीश कश्यप की फाइल से ड्राफ्ट के रूप में प्राप्त
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