नगरपालिका की ट्राली ट्रेक्टर के पीछे खिंची जा रही थी. वह शहर के कूड़े से लबालब भरी थी, जिसे नगर से बाहर खत्तियों में भरने ले जाया जा रहा था. बाद में खाद बन जाने पर उसे नगरपालिका किसानों को बेच देगी.
‘कहो क्या हालचाल है जी?’ इस आवाज को सुनकर भगवान के चरणों से उतारी गई बासी फूलमाला ने इधर-उधर देखा तो पाया कि वेश्या के जूड़े से उतरा एक गजरा कुछ कहना चाहता है.
‘तू वहां रहने वाले....तू मेरे साथ कैसे?’
‘यही तो मैं भी तुझसे पूछना चाहता हूं. तू इस गंदे कूड़े के ढेर पर क्या कर रही है? तुझे तो गंगा मां के पवित्र पानी पर तैरना चाहिए.’
तभी तीसरी आवाज उभरी—‘मित्रो मेरा नाम गुलाब है. कल शाम को एक युवक ने मुझे एक युवती को भेंट किया था; और वह मुझे सारी रात चूमती रही. सुबह उसने शायद घरवालों के डर से खिड़की के रास्ते मुझे सड़क पर फेंक दिया.’
‘आज का आदमी कितना स्वार्थी है.’ फूलमाला ने किलसते हुए कहा—‘भक्तों की भीड़ में किसी आदर के साथ मुझे भगवान के गले में डाला गया था और भोर होते ही उतने ही अनादर से उतार डाला.’
‘गजरा बोला—‘तू ठीक कहती है बहन, उस वेश्या ने शाम के वक्त मुझे अपने जूड़े में कितनी अदा से लगाया था. उस रात मैंने गीत-संगीत का आनंद लिया. सुबह हाने से पहले उसने मुझे नोंचकर फेंक दिया और घप्प से पलंग पर पसर गई.’
कुछ देर चुप्पी छाई रही तो गुलाब बोला—‘हम आदमी की शिकायत किससे करें? अगर हम न हों तो सारा संसार ही उजड़ जाए.’
इसपर फूलमाला बोली—‘मित्रो, हमारी शिकायत का कोई मूल्य नहीं है. अब देखो न, हम फिर से गहरे खत्ते में डाल दिए जाएंगे. हमरो जिस्म सड़कर खाद बन जाएंगे. उस खाद से फिर जमीन उर्वर बनेगी. फसलें उगेंगीं, फूल खिलेंगे और हम तोड़े जाएंगे, भगवान की भेंट चढ़ेंगे, वेश्या का जूड़ा सजेगा, पे्रमिका की जुल्फ महकेगी. यह सब तब तक होता रहेगा, जब हम यूं ही चुप रहेंगे.’
प्रस्तुति: विनायक
लघुकथा संग्रह ‘कदम—कदम पर हादसे’ से
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