Saturday, September 4, 2010

नागरिक

खेत में फसल का पहला पानी देने के बाद वह रजवाहे की मुंडेर पर बैठा दूर डूबते हुए सूरज को देख रहा था. सूरज डूबते वक्त इतना ठंडा क्यों हो जाता है—धूप में कोई असर ही नहीं. उसने देखा कि किसान पिता फावडे़ से खेत की नालियां सही करने में लगा था. कौन विश्वास करेगा कि पिता-पुत्र एकसाथ खेत में काम करते हैं—पर बोलते नहीं एक-दूसरे से. वो मैंकू का किसान बाप अपने बेटे से खूब गप्पें हांकता है. हुक्का सुलगाने से पहले सुट्टे मार लेता है. पिता-पुत्र दोनों गंवारी गीत गाते काम करते रहते हैं.
अब वह पीपल के पास आ गया था. यहीं बचपन में वे पेड़ पर चढ़ते थे और कोटरों में से तोते के बच्चे निकाल ले आते थे. उसका कुसूर इतना ही तो था कि वह शहर में पढ़ आया है और बेरोजगार होकर अपने बाप के संग खेत में लगा है. तो इसमें बुराई क्या है! पर न जाने क्यों बाप उसे नौकरी पर ही देखना चाहता है—यही हजार-आठ सौ की नौकरी, हूं!’ उसका मुंह कसैला हो गया.
गांव के लड़के-लड़कियां उससे न जाने क्यों खौफ खाते हैं. वह डबल एम.. है तो क्या हुआ? क्या खेती के अयोग्य हो गया? न जाने क्यों सब उसे सहमी निगाहों से देखते हैं या हिकारत से!
पीपल बाबा, मैंने गांव में आकर कौन-सा अपराध कर दिया है—मैं तो इसी गांव का हूं, यहीं पला हूं.’
पीपल बाबा शांत खड़े हैं. उनकी विशाल आसमान छूटी डालियों पर पक्षियों का शोर हो रहा है. गोधूलि का समय है, गाय-भैंस जंगलों से लौट रही हैं. उसने आंसुओं को चुपचाप पौंछ डाला है. यह जानकर कि कहीं कोई देख न ले.
प्रस्तुति: विनायक
लघुकथा संग्रह ‘कदम—कदम पर हादसे’ से

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