Wednesday, September 22, 2010

चपरासी

जगदीश कश्यप की लुप्तप्राय लघुकथा

यह संयोग ही था कि जिस विभाग में मेरा दोस्त काम करता था, उसी में मेरा भी स्थानांतरण हो गया. एक बार उसने मेरी एक कहानी पर खुलकर समीक्षा की थी और पत्रों के माध्यम से हम गहरे मित्र बन गए थे. कथा-साहित्य पर उसका अद्भुत अधिकार था. स्थानांतरण पर मुझे खुशी हुई कि अब हम दोनों निकटवर्ती बनकर रह सकेंगे. मैंने उसे उत्साह-भरा पत्र लिखा कि मैं उसके यहां ब्रांच मैनेजर होकर आ रहा हूं. मैं वहां पहुंचा तो मालूम हुआ कि मेरे आने से पहले ही वह त्यागपत्र दे हमेशा के लिए अपने गांव जा चुका था.
उस दिन मुझे विश्वास नहीं हुआ कि विभाग की उस शाखा में वह चपरासी था.

प्रस्तुति : विनायक
लेखनकाल -1973

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