Sunday, September 5, 2010

युद्ध का गणित

लड़ाई पूरे जोरों पर चल रही थी. दोनों पक्ष किसी--किसी मोर्चे पर एक-दूसरे के इलाके में घुसे हुए थे और मातृभूमि के प्रति जी-जान से अपना कर्तव्य निभा रहे थे.
अचानक युद्ध विराम की घोषणा हुई. थोड़ी ही देर में स्थिति स्पष्ट हो गई. दोनों देशों के जवान सीमा में आमन-सामने थे, लेकिन अब उनका रूप आक्रामक न होकर स्तब्धकारी था.
तुम्हारे पास बीड़ी है.’ दुश्मन के जवान ने दूसरे देश के जवान से पूछा.
मेरे पास तो नहीं, पर ठहरो, मैं अपने साथी से पूछता हूं.’
कुछ घंटों के भीतर ही दोनों देशों के जवान घरेलू बातों पर उतर आए और खेती, लड़के की शिक्षा, लड़की की शादी तथा पत्नी की जिम्मेदारी की बावत अपने-अपने अनुभव सुनाने लगे. इस बीच दुश्मनों से घिरे जवानों ने आपस में बांटकर खाना खाया और गीत-संगीत का आदान-प्रदान होने लगा.
यार, हम आपस में खून-खराबा क्यों करते हैं? क्यों लड़ते हैं एक-दूसरे से?’ यह बात किसी जवान ने काफी रात गए किसी दुश्मन फौजी से पूछी थी, जो चुपचाप लेटा गहन आकाश में तारे गिन देख रहा था.
हां यार, झगड़े तो बातचीत से भी निपटाए जा सकते हैं, पर हुक्मरान के दिमाग को क्या कहें, जो सरकार चाहेगी, वही तो होगा.’
इधर वे दोनों जवान भाईचारा निभा रहे थे, उधर दोनों देशों के रेडियो यह खबर अपने-अपने ढंग से प्रसारित कर रहे थे—
अस्थायी युद्धविराम भंग. वार्ता असफल. देश की जनता अंत तक दुश्मनों का मुकाबला करेगी.’
वे जवान, जो कुछ ही घंटों में भाई बन गए थे, अब एक-दूसरे के खून के प्यासे थे.
प्रस्तुति: विनायक
लघुकथा संग्रह ‘कदम—कदम पर हादसे’ से



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