Thursday, September 16, 2010

कबाव की हड्डी

[जगदीश कश्यप हिंदी के उन महान लघुकथाकारों में से थे, जिन्होंने न केवल लघुकथा-क्षेत्र में रचनात्मक लेखन किया, बल्कि एक बेबाक समीक्षक के रूप में भी इस क्षेत्र में अपना दखल बनाए रखा. वे पश्चिमी उत्तरप्रदेश में लघुकथा आंदोलन के अगुआ रहे. उन्हें लघुकथा के तत्वों की पहचान का श्रेय दिया जाता है. श्रेष्ठ लघुकथा की पहचान के लिए उन्होंने एक कसौटी विकसित की. बाद में अपनी लघुकथाओं को बड़ी निर्ममता से उस कसौटी पर परखा. ‘कबाव की हड्डी’ उनकी ऐसी ही ‘लघुकथा’ से खारिज रचना है, जो उनके किसी भी लघुकथा संग्रह में नहीं है. पाठकों को यह लघुकथा इस अनुरोध के साथ दी जा रही है वे इसे बजाय लघुकथा के, जगदीश कश्यप की लघुरचना के रूप में लें. विनायक]

पत्रकार उन प्रतिष्ठित लोगों के लिए भयंकर पीड़ा बन गया जो स्टाकिस्ट, व्यापारी और कल्याणकारी संस्थाओं के पदाधिकारी थे. इन लोगों ने अखबार के मालिक को धमकी दे दी थी कि या तो वह अपने रिपोर्टर को नौकरी से निकाल दे या अदालतों के चक्कर काटने को तैयार रहे. उन्होंने सरकार से शिकायत की कि बेबुनियाद भंडाफोड़ और चरित्र-हत्या करने वाले अखबार को फौरन बंद कर दिया जाए. कई सरकारी अधिकारी इसी अखबार के कारण सेवा मुक्त कर दिए गए, क्योंकि इसके रिपोर्टर ने न जाने कब रिश्वत, टेंडर आदि की घपलेबाजी सप्रमाण इकट्ठी की थी.
उस दुबले-पतले अखबार के पीछे न केवल गुंडे लगा दिए गए, बल्कि उसे मौत के घाट उतारने के लिए साजिशें भी रची गईं जो असफल सिद्ध हुईं. इस तरह निर्भीक पत्रकारिता से अखबार जनता के बीच लोकप्रिय होने लगा.
एक दिन व्यापारियों, जमाखोरों व प्रतिष्ठित लोगों ने उस निर्भीक पत्रकार का सम्मान करने हेतु शहर में विशाल सभा का आयोजन किया, जिसमें उसके सादे जीवन उच्च विचार पर अनेक लोगों ने प्रकाश डाला. एक व्यापारी ने सुझाव दिया कि आगामी विधानसभा चुनाव मे उसे अपना उम्मीदवार बनाया जाए. इस बात का सभी ने तालियों की गड़गड़ाहट से स्वागत किया.
जाहिर था कि जनता ने लोकप्रिय पत्रकार को बहुमत से चुना. विरोधी वह आजाद उम्मीदवारों की जमानतें जब्त हो गईं. एक शाम को शानदार पार्टी हुई. जिसमें मुनाफाखोर व जमाखोर आने वाले सुनहरी कल की बातें कर रहे थे. नशे में झूमता हुआ उपभोक्ता समिति का सचिव बोला—‘अच्छा हुआ, हरामी एमएलए बन गया. अब हमारी पोल खोलेगा!’
दूसरा बोला—‘तुमने देखा नहीं, चुनाव जीतने के बाद वह हाथ जोड़कर हमारा शुक्रिया अदा कर रहा था. जबकि पहले हमें उसके हाथ जोड़ने पड़ते थे. इसी को कहते हैं, एक तीर से दो शिकार. और सारा हा॓ल व्यंग्य-भरे ठहाकों से गूंज उठा.
प्रस्तुति: विनायक

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