Tuesday, September 14, 2010

उसका संरक्षक

ग्रामीण क्षेत्र के एक जनसंपर्क अधिकारी ने बंधुआ प्रथा से मुक्त एक बूढ़े को जब यह बताया कि अब वह आजाद है तो ग्रामीण अचंभे से उस बाबू को घूरने लगा और भयभीत आवाज में बोला वह शीघ्र ही वहां से भाग जाए वरना ऐसी बातें करने पर लंबरदार के गुंडे उसे मार डालेंगे. इसपर अधिकारी को घोर आश्चर्य हुआ. उसने ग्रामीण को समझाते हुए बताया कि सरकार ने उसके तमाम कर्जों को मुआफ कर दिया है. अगर सूदखोर जबरदस्ती कर्ज वसूलेगा तो उसे जेल में डाल दिया जाएगा.
पीढ़ी-दर-पीढ़ी कर्ज से लदे उस बूढ़े ने अधिकारी को पागल समझा. वह उसके साथ सहानुभूति प्रकट करते बोला—‘भगवान करै, तुम्हारी कही बात सच हो जावै!’ ग्रामीण के इस वाक्य से अधिकारी को कुछ संतोष हुआ. अतः बोला—‘तुम लोगों को सरकार अब मुफ्त जमीन भी दे रही है.’
इस ग्रामीण चैंका नहीं. उसे पता था कि चुनाव वाले हर बार उसके गांव में वोट लेने के मौसम में ऐसी ही बातें करतें हैं. तभी तो उसने पूछा, ‘बाबू! क आप वोट लेने वारे हैं?’
नहीं भैया अब सरकार तुम्हें अपना मकान बनाने के लिए कर्ज भी देगी.’ उसने आंकड़े देकर वृद्ध को समझाया कि सरकार ने अब तक कितनी जमीन गरीबों को मुफ्त बांटी है और कितने लोगों को निजी धंधा शुरू करने के लिए कर्ज दिए हैं.
ग्रामीण समझ नहीं पा रहा था कि वह अधिकारी उसके पीछे क्यों पड़ा हुआ था और धूप में उसके साथ दो मील पैदल भी चल चुका था. बूढ़े ने हमदर्दी झलकाते हुए कहा, ‘बाबू तन सुस्ता लो, धूप में साला दिमाग गरम होई जावै है.’
काफी देर तक माथा-पच्ची के बाद भी जब अधिकारी अपनी बात ग्रामीण के मस्तिष्क में न उतार सका तो वह खिसियाकर लौट पड़ा.
दूसरे दिन उस गांव में एक समारोह हुआ. जिला अधिकारी, बैंक मैनेजर, तथा ग्राम प्रधान के साथ काफी संख्या में ग्रामीण भी उपस्थित थे. जब उस बूढे ने अधिकारी द्वारा बताई बातों को ठीक पाया तो वह बार-बार अपने हाथ वाले उन कागजात को उलटने-पलटने लगा, जो उसे जमीन मुफ्त में दिए जाने का प्रमाण थे. उसके हाथ में बैंक द्वारा प्रदत्त कर्ज की रकम भी थी. इस समारोह में लंबरदार भी था, साहूकार भी था, जिनकी जी-हुजूरी करते हुए उसकी सात पीढ़ियां खत्म हो चुकी थीं.
उस बूढ़े ने पहली बार गर्दन उठाकर घृणा से उसे घूरा गोया कि वह अपने ऊपर किए गए जुल्मों का बदला लेने वाला हो. उसे पहली बार अनुभव हुआ कि उसका भी कोई संरक्षक है.
काश! उसका संरक्षक कुछ वर्ष पहले आ गया होता. उसने सोचा-तब उसकी जवान लड़की असमय ही गर्भवती न होती, जिस कारण वह कुएं में डूब मरी थी.

प्रस्तुति: विनायक
लघुकथा संग्रह ‘कदम—कदम पर हादसे’ से

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