Saturday, November 27, 2010

लघुकथा साहित्य और समीक्षा को समृद्ध किया है जगदीश कश्यप ने

अपनी प्रतिभा, परिश्रम, समर्पण भाव, सक्रियता और सृजनात्मक सामथ्र्य के बल पर स्थापित होने वाले लघुकथाकारों की गिनती बहुत ही कम है. जगदीश कश्यप उन बहुत ही थोड़े से लोगों में से एक हैं, जिन्होंने लघुकथा की पुन:स्थापना में बहुत महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है. उन्होंने न केवल कई कुछ सशक्त लघुकथाएं देकर लघुकथा साहित्य को समृद्ध किया है, बल्कि लघुकथा के समीक्षा पक्ष को भी पुष्ट किया है. इसी कारण तमाम कमियों और खूबियों के साथ जगदीश कश्यप का नाम पूरे सम्मान के साथ लिया जा सकता है.
अपने सृजनात्मक लेखन और महत्त्वपूर्ण आलोचनात्मक काम के साथ-साथ अपनी तीखी टिप्पणियों के कारण जगदीश कश्यप हमेशा विवादों से घिरे रहे हैं. उनके इस विवादित व्यक्तित्व के पीछे कुछ कारण हो सकते हैं. जहां तक उनके रचनात्मक योगदान का प्रश्न है, उसे किसी भी रूप में नकारा जाना संभव नहीं है.
सामाजिक-आर्थिक विसंगतियों की विडंबना में अत्यंत व उत्पीड़ित हो रहे कमजोर वर्ग की तकलीफों और संघर्षों को जगदीश कश्यप ने बड़ी शिद्दत के साथ रेखांकित किया है. भूख, गरीबी, अन्याय, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार, शोषण, दमन, अभाव, पीड़ा का बहुत सार्थक चित्रण जगदीश कश्यप की लघुकथाओं में मिलता है. बार-बार दोहराई जाने वाली स्थितियों को उठाने के बावजूद जगदीश कश्यप ने उन्हें एक नए और अछूते कोण से उठाकर मानवीय संवेदना के धरातल पर उकेरा है.
लघुकथा में ऐसे लोगों की कमी नहीं है जो ढेरोंढेर लिखने और छपने के बावजूद अभी तक एक भी सार्थक लघुकथा नहीं दे पाए हैं. जबकि जगदीश कश्यप ने कई ऐसी सार्थक लघुकथाएं साहित्य को दी हैं, जिनसे लघुकथा साहित्य समृद्ध हुआ है. ‘विकल्प का दंश’, ‘पहला गरीब’, ‘सांपों के बीच’, ‘उसका संरक्षक’....आदि कुछ ऐसी ही लघुकथाएं हैं जो लघुकथा साहित्य का प्रतिनिधित्व कर सकती हैं.
रिश्ते’ लघुकथा में मानवीय संघर्षों की जटिलता और अनाम रिश्तों को संवेदनात्मक चित्रण है.
अंतिम गरीब’ लघुकथा शोषण और दमन पर आधारित भ्रष्ट व्यवस्था के सामने प्रश्न खड़ा करने और जीवन के धनात्मक सोच का एक सशक्त उदाहरण प्रस्तुत करती है.
थर्मस’ लघुकथा में आर्थिक कुचक्र में फंसे आम आदमी के निंरतर जूझते और आहत होते जाने का मार्मिक चित्रण है.
उपकृत’ लघुकथा में मालिक द्वारा नौकर के शोषण के लिए अपनाए गए हथकंडों का बहुत मार्मिक चित्रण किया गया है.
ब्लैक हार्स’ लघुकथा मानवीय संबंधों के अवमूल्यन को बहुत मार्मिक ढंग से प्रस्तुत करती है.
इनके अतिरिक्त भी ‘सरस्वती पुत्र’, ‘दूसरा सुदामा’, ‘बबूल’, ताड़वृक्ष की छाया’ और ‘पहरुए’ आदि उल्लेखनीय लघुकथाएं हैं.
कुछ लघुकथाओं में उन्होंने प्रयोग करने के भी प्रयास किए हैं. जिनमें कुछ में वे सफल भी रहे हैं. एक लंबे अर्से से लिखते रहने के बावजूद अपना संग्रह देने की उतावली न करना भी उनकी परिपक्वता का भी उदाहरण हो सकता है. यह इन ढेरोंढेर और धड़ाधड़ पुस्तकें छपवाने वाले लोगों के लिए एक आदर्श हो सकता है. हालांकि जगदीश कश्यप की कुछ लघुकथाओं को देखकर लगता है कि उनकी लघुकथाओं में तो कलात्मक ऊंचाई और सुस्पष्ट वैचारिकता का अभी भी कहीं कुछ अभाव-सा है. संभवतः यह उनके प्रयोगवादी रचानाकार का कोई नया या अछूता अंदाज हो.
जगदीश कश्यप अपने ही प्रति क्रूर रहने वाले कुछ रचनाकारों में से हैं, जिन्हें अपनी ही कमजोर रचनाएं अपनी बनाई हुई कसौटी पर पूरी न उतरने पर खारिज करते हुए देर नहीं लगती. उन कुछ नकली और अगंभीर रचनाकारों को कम से कम कुछ तो सीखना चाहिए जो अपनी निरर्थक रचनाओं को महान बताने के लिए कैसे-कैसे हथकंडे अपनाते हैं.
जगदीश कश्यप आठवें दशक की शुरुआत से ही सक्रिय रहे हैं. चाहे ‘मिनीयुग’ का संपादन हो या किसी पत्र-पत्रिका का विशेषांक. जगदीश कश्यप अपनी तीखी टिप्पणियों के कारण हमेशा चर्चा में रहे हैं. आठवें दशक में उनके द्वारा लिखे गए आलेख ‘लघुकथा का ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य’(समग्र विशेषांक) से उनके परिश्रम और रचनात्मक ऊर्जा का पता चलता है. इसके अतिरिक्त कुछ लेख जगदीश कश्यप को समीक्षक के रूप में प्रतिष्ठित करते हैं.
लघुकथा की तकनीक को लेकर जगदीश कश्यप शुरू से ही चिंतित रहे हैं. इसके लिए उन्होंने कई एक टिप्पणियां लिखी हैं. साथ ही उन्होंने कुछ प्रश्न उठाए, जिनपर व्यापक चर्चा होती रही है और हो रही है.
जगदीश कश्यप अपनी तीखी टिप्पणियों और छद्म रचनाकारों को बेपर्दा करने के लिए हमेशा एक आतंक बने रहे हैं.
लघुकथा विधा के साथ हो रहे खिलवाड़ को लेकर एक ईमानदार रचनाकार का दुखी और चिंतित होना स्वाभाविक है. अगंभीर और छद्म रचनाकारों का विरोध करना किसी भी साधक की स्वाभाविक प्रतिक्रिया है. जिसे जायज माना जाना चाहिए. जगदीश कश्यप की पीड़ा और विरोध में काफी कुछ ऐसा ही है.
तमाम कमियों और खूबियों के बावजूद जगदीश कश्यप एक महत्त्वपूर्ण हस्ताक्षर हैं, जिनके योगदान को भुलाया जाना संभव नहीं. लघुकथा साहित्य को अभी भी उनसे बहुत-सी आशाएं और अपेक्षाएं हैं.

कमल चोपड़ा


प्रस्तुति : विनायक
कदम-कदम पर हादसे’ से

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