Monday, November 22, 2010

अजाने विद्रोह की कथा

उसकी उंगलियों ने माचिस में घुसपैठ की और एक तीली को निकाल लिया. जलती हुई तीली सिगरेट के पास आई, वह अभी इतना ही कह पाई थी
यह आदमी अपनी बुराई क्यों नहीं सुनना चाहता कि लेखक ने सिगरेट को एक क्षण घूरा. सिगरेट गुस्से से लाल हो उठी. कहीं सिगरेट बगावत न कर दे, उसने तुरंत ही तिल्ली को झटका देकर सड़क के किसी भी ओर फेंक दिया. अब-जब भी वह सिगरेट को होठों से लगाता वह गुस्से से लाल हुई जाती. लेकिन यह सिगरेट के इस गुस्से को धुंए में डुबो देता बार-बार. अंत में उसे यह यकीन हो यगा कि उसने अपने दूसरे विरोधी को नाकाम कर दिया है. तो उसे कुछ राहत मिली. उसने झटके से सिगरेट को न केवल सड़क की पटरी पर फंेका, बल्कि उसे अपने जूते की एड़ी से मसल दिया
कहो, क्या हाल-चाल है?’ सिगरेट के टोटे ने जूते की एड़ी से पूछा.
सिगरेट का टोटा किलस गया, ‘कब तक यह शख्स मेरे विद्रोह को दबाता रहेगा! टोटे ने एड़ी से चिपककर कहा. तभी दूसरे जूते की तली से चिपकी तीली चिल्लायी‘अरे, मैं यहां हूं, इधर आओ न!’
कहकर वह जूते से अलग होकर सड़क पर आ गिरी. कुछ कदम की दूरी पर सिगरेट का टोटा भी दूसरे जूते से अलग हो, सड़क पर आ गिरा. उसके बाद सैकड़ों जूते उन दोनों के ऊपर से गुजरे. कई पास से निकल गए. लेकिन वे वहीं के वहीं पड़े रहे.
जैसे ही रात हुई, टोटे ने चिल्लाकर कहा‘अच्छा साथी, सुबह कूड़ेदान में हम दोनों फिर मिलेंगे.’
प्रस्तुति: विनायक
कदम-कदम पर हादसे’ से

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