‘मैंने कहा—उठो साहब.’ उपमंत्री को झंझोड़ा गया जो उन्होंने मिचमिची आंखों में क्रोध भरकर देखा कि हुजूम उनके कमरे में विद्यमान था. कुछ लोग हाथ जोड़े हुए थे. उपमंत्री तुरंत की चेहरे पर सौम्यता लाए और बोले—‘कहो भाई मधुकर, कैसे हो? तुम कल दिखाई ही नहीं दिए.’
मधुकर स्थानीय अखबार का रिपोर्टर था और उसने अपने दोस्त को जितवाने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा दिया था. वह बोला—‘मैं बाद में, पहले इन लोगों की फरियाद सुनो! नगर प्रशासन ने इनके घर यह कहकर गिरा दिए है कि वे एल.एम.सी की जमीन पर बने थे. अब बताओ ये लोग कहां जाएं!’
उपमंत्री सुनते ही रोष में आ गए और सेक्रेटरी को बुलाकर फोन मिलवाया. चैयरमेन को फोन पर बुरा-भला कहा. परगनाधिकारी से भी बातचीत की.
‘आप लोग जाएं. मैंने बात कर ली है. मैं इस केस को पूरी तरह देखूंगा.’ गरीब मजदूर, ‘जी हुजूर, माई-बाप’ कहते हुए चले गए.
‘कहो मधुकर, कैसा चल रहा है?’
तभी सेक्रेटरी ने बीच में आकर कहा—‘चीफ मिनिस्टर आपसे बात करना चाहते हैं.’ उपमंत्री ने चोगा कान से लगाकर कहा—‘यस सर!’
उधर से कुछ कहा गया तो उपमंत्री विशेष अंदाज में सावधान हो गए और बोले—‘मैं रवाना हो रहा हूं. सारी सर! यहां लोगों के घर गिरा दिए गए थे, उसी सिलसिले में फंस गया था. यस...यस...यस सर, नहीं मैं इस मामले में नहीं पड़ना चाहता. अवैध निर्माण होंगे तो गिरेंगे ही...यस सर, इसमें हम क्या कर सकते हैं....डांट वरी सर, मैं अभी रवाना हो रहा हूं.’
प्रस्तुति: विनायक
‘कदम-कदम पर हादसे’ से
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