उस रात धवल चांदनी में नहा रहा एक पत्थर बोला—
‘बहन शिला, किसान नहीं जानते कि उस खंडहर महल और हम पर देश के विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में कितना कुछ छापा है. विदेशी विद्वान कितनी मुसीबतें उठाकर यहां तक आते हैं और हम पर खुदे लेखों को कितनी सावधानी से पढ़ने की कोशिश करते हैं या फोटो उतारते हैं.’
शिला बोली—‘भाई मेरे , इस गुमटी के आसपास उस वक्त भी खेती होती थी, जब हमें यहां पर राजा की आज्ञा से उसकी यशोगाथा खुदवाकर गाढ़ा गया था. आज इन बातों को हजारों साल बीत गए हैं. उस राजा के जमाने में भी किसान रोता था, और आज भी ये लोग रोते हैं. जबकि अनेक किसान समर्थक नेता और राजनीतिक लोग इनके समर्थन में जुलूस और रैली आयोजित करते रहते हैं.’
‘हां, ये चमत्कार क्या है बहन? आज खेती करना कितना आसान हो गया है. ट्रेक्टर , खाद, बीज, थ्रैशर, बिजली-पानी की सुविधा आज के किसान को उपलब्ध है. फिर इनके रोने का कारण क्या है?’
इस पर शिला कुछ सोचते हुए बोली—‘खेती चाहे कितनी भी आधुनिक क्यों न हो जाए, पर गरीब किसान वही हल-बैल से आगे नहीं बढ़ पाएगा. सच में इनकी नियति हमारी तरह है. शासक आएंगे, चले जाएंगे, पर पीढ़ी-दर-पीढ़ी ये लोग ऐसे ही रहेंगे जैसे कि हम. क्या कभी किसान के नाम का पत्थर या शिलाखंड कहीं गाढ़ा गया है, जिसपर किसान के दुख और कष्ट उकेरे गए हों!’
तभी चंद्रमा के मुख पर काले बादल छा गए और उस घोर अंधकार में पत्थर कुछ सोचने लगा.
प्रस्तुति : विनायक
‘कदम-कदम पर हादसे’ से
No comments:
Post a Comment