‘अमिय बाबू? इस बार कितने पर हाथ साफ करने का इरादा है?’ गांगुली ने चाय की चुस्की लेते हुए पूछा तो अमिय चटर्जी को गुस्सा आ गया.
‘गांगुली, होष की बात कर! मेरी समझ में नहीं आता कि तू नास्तिक होते हुए दुर्गा पूजा में इतनी रुचि क्यों रखता है?’
‘साब, अर्थ का सवाल अमिय बाबू!’ और चुटकी बजा दी
‘ये जो वामपंथी सरकार हम लोगों को प्रतिमाह बेरोजगार भत्ता देती है ना, साला ये चायवाला एक ही दिन में हड़प लेता है.’
चाय वाला जानता है कि इन बेरोजगार युवकों को न तो सरकार से लोन लेकर अपना छोटा-मोटा धंधा चलाने में कोई रुचि है और न ही ये कोई प्रषिक्षण प्राप्त करना चाहते हैं. बस पूरी दिनचर्या अंतरराष्ट्रीय राजनीति पर बहस करने में खर्च कर देते हैं.
‘चल अमिय, देखते हैं मां दुर्गा की प्रतिमा कैसी बनी है!’
चलते-चलते अमिय ने कहा, ‘बंधु, हम मां दुर्गा के नाम पर लोगों को तंग करके चंदा क्यों उगाहते हैं?’
‘अरे छोड़ यार, तेरे-मेरे घर की हालत सरकार तो सही कर नहीं देगी. मां दुर्गा के लिए हम लोग ये सब करते हैं. ये धन्ना सेठ कौन अपनी जेब से चंदा देते हैं...सब नंबर दो का पैसा है. आखिर मां-बाप के प्रति हमारा भी तो कुछ कर्तव्य है. चंदा उगाही से जो कुछ दुर्गा पूजा का आयोजन करते हैं, उसमें से अपनी मेहनत का कुछ बचा लिया तो कौन-सा पाप करते हैं. मां-पिता के लिए नई धोती और कुर्ता का ही तो जुगाड़ हो पाता है. काश! दुर्गा पूजा का उत्सव सारे साल चले.’
अमिय ने देखा, मां की प्रतिमा क्रोध-भरी आंखों से घूर रही थी. उसका दिल धक-धक करने लगा. गांगुली न जाने क्या-क्या कहता रहा, उसे बिलकुल समझ नहीं आया.
प्रस्तुति: विनायक
‘कदम-कदम पर हादसे’ से
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