Monday, October 4, 2010

मसिजीवी

लड़की के मां-पिता व छोटी बहन चुपचाप बैठे मेरी ओर देख रहे थे और मैं मेज पर प्रसिद्ध क्रिकेट खिलाड़ी की स्टील वाले फ्रेम में रंगीन फोटो देखते हुए चाय सिप कर रहा था. पत्र में तो उषा लिखती थी‘आपकी रचनाओं से मुझे बड़ी प्रेरणा मिलती है. कैसे लिख लेते हैं ये सब?’
वायदे के मुताबिक मैं शकुन के साथ उठ लिया और सड़क पर आ गया.
दरअसल शकुन को मैंने उसकी पीएचडी के लिए काफी मैटर उपलब्ध कराया था. उसी ने मुझे इस पी. पी. टीचर लड़की के बारे में लिखा था कि अगर शादी में रुचि हो तो बात चलाई जाए. मैंने ’हां’ लिख दी थी.
बस चल दी थी. पुष्कर से पहले ही जहां इस लड़की का स्काउट कैंप लगा था, हम वहीं उतर लिए. कैंप खाली पड़ा था. उषा ने बताया कि सब लड़कियां पुष्कर कैंप फायर में गई हैं. मुझे बैठने का इशारा कर वह सामने तंबू में चली गई. जब बाहर आई तो उसके हाथ में दो सेब और चाकू था. शकुन ने लिखा था कि लड़की के मां-बाप गरीब हैं, छोटी बहन की पढ़ाई के अलावा भाई बेरोजगार था. मैंने आश्वस्त कर दिया था कि उषा को एक थोती में ही ले जाऊंगा.
उसके बुझे हुए अंदाज से मैंने जज कर लिया था कि वह मेरे साधारण से पहनावे पर अति खिन्न थी. जबकि शकुन ने लिखा था कि जरा कपड़े ठीक-ठाक पहनकर आना.
लीजिए!’ कहते हुए उसने सेब का एक टुकड़ा मेरी ओर बढ़ाया.
शकुन तुम्हारे गाने की बड़ी तारीफ कर रही थी. कुछ सुनाओ!’
इस पर वह कुछ नहीं बोली और फोल्डिंग चेयर पर बैठी सेब का टुकड़ा मुंह में रख धीरे-धीरे कुतरती रही.
आपको क्रिकेट का शौक है?’ एकाएक वह बोली और कुर्सी पर टंगे थैले में से ट्रांजिस्टर निकालकर क्रिकेट कमेंटरी सुनने लगी.
मुझे तो बड़ा बोर गेम लगता हैआई मीन नेशनल ला॓स.’ मेरी निधड़क बात पर वह कुछ नहीं बोली.
एकाएक ‘क्लीन बोल्ड’ शब्द के साथ प्रचंड शोर की ध्वनि सुनाई देने लगी तो वह अत्यंत उत्साह में आकर बोली‘तीसरा भी गया! कपिलदेब ने आज कमाल ही कर दिया.’
मुझे आत्मग्लानि हुई कि क्रिकेट का शौक मैं क्योंकर नहीं पाल सका. वह गुनगुनाती हुई उठी और तंबू में जाकर फिर लौट आई.
आप ऐसा करें, पहाड़ी वाली सड़क के मोड़ पर खड़े हो जाएं. आखिरी बस आने का समय हो गया है. वरना फिर कोई ट्रक ही मिल पाएगा आपको. मुझे तो रात को यहीं रुकना है. मैं कल शकुन को सबकुछ बता दूंगी.’
लेखक होने का इतना मतलब तो होना ही चाहिए कि वह यह समझ ले कि लड़की ने उसे नापसंद कर दिया हैबेशक पत्रों में समर्पण वाली बात लिखती रही हो. आखिर वह मुझे यहां लाकर अपमानित क्यों करना चाहती थी. पहले ही अपनी बात बता देती. इसी उधेड़बुन में मैं शकुन के साथ उठ लिया और बोझिल कदमों से पहाड़ी वाली सड़क पर आ गया. शाम का धुंधलका छाने लगा था. सिहरा देने वाली ठंडक को महसमस कर बिना बस या ट्रक की परवाह किए, शहर तक तेरह-चौदह किलोमीटर की दूरी मैं पैदल ही इस तेजी से नापने लगा मानो कपिल देव का पीछा कर रहा होऊं. शकुन मुझसे पीछे छूट गई. पता नहीं वह मेरे इस अप्रत्याशित व्यवहार के बारे में क्या सोच नही थी.

प्रस्तुति : विनायक
'कदम-कदम पर हादसे' से

5 comments:

  1. हिन्दी ब्लॉग की दुनिया में आपका स्वागत है दोस्त.. ऐसे ही लिखते रहिये..

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  2. अच्छी पोस्ट , शुभकामनाएं ।

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  3. हिंदी ब्लाग लेखन के लिए स्वागत और बधाई
    कृपया अन्य ब्लॉगों को भी पढें और अपनी बहुमूल्य टिप्पणियां देनें का कष्ट करें

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  4. इस ब्लाग पर मिली प्रतिक्रियाओं से मैं अभिभूत हूं. पर यह सूचित करना मेरा कर्तव्य है कि यहां प्रकाशित सभी रचनाएं जगदीश कश्यप की हैं, जो आज हमारे बीच नहीं हैं. पर लघुकथा के क्षेत्र में उनका योगदान आज भी हमारा दिशानिर्देशन करता है. मेरे अपने ब्लाग ‘आखरमाला’ तथा ‘संधान’ हैं. उनके URL हैं—
    http://omprakashkashyap.wordpress.com
    http://opkaashyap.wordpress.com
    विनायक

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  5. इस नए सुंदर से चिट्ठे के साथ आपका हिंदी ब्‍लॉग जगत में स्‍वागत है .. नियमित लेखन के लिए शुभकामनाएं !!

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