एक प्रसिद्ध तैराक अनेक डूबते हुए लोगों को बचाकर काफी प्रशंसा अर्जित कर चुका था. आज वह घर की परेशनियों से तंग आकर आत्महत्या करने नदी की ओर जा रहा था. उसका विश्वास था कि वह पुल से छलांग लगाने पर हमेशा की तरह इस बार तैरने का प्रयत्न नहीं करेगा और इस तरह से डूबकर हमेशा के लिए गरीबी से पीछा छुड़ा लेगा.
पुल पर पहुंचते ही उसने चीख-पुकार की आवाजें सुनीं. जब किनारे पर आया तो उसकी गिरफ्त में बारह साल का लड़का था. पिकनिक पर आए हुए मास्टर जी ने कहा—
‘तुमने हमारे छात्र की जान बचाई है, ये लो पचास रुपये बतौर इनाम के.’
उसने देखा कि वह स्कूली बच्चों की भीड़ से घिरा हुआ था. वह तनिक मुस्कराया और धीरे-से बोला—‘जी शुक्रिया, मैंने आज तक इस काम का कोई पैसा नहीं लिया. यह तो मेरा नैतिक कर्तव्य था.’
और विजय-भाव से मुस्कराता हुआ वापस घर की ओर लौट चला.
प्रस्तुति: विनायक
‘कदम-कदम पर हादसे’ से
प्रेरक कथा। बधाई।
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