Thursday, November 18, 2010

मशाल बनते हुए

लड़का जिस उपेक्षित अंदाज से उठ खड़ा हुआ, उससे मुझे और पत्नी को अचंभा नहीं हुआ. लड़की अब भी सिर झुकाए बैठी थी. मैने एकाएक निर्णय लिया कि अब किसी के आगे लड़की को चाय की ट्रे ले जाने को नहीं कहूंगा.
लड़के वालों को विदा कर मैं मैं लौटा तो पत्नी की आंखों में क्रोध और लड़की की सिसकियों से सहम गया. मैंने पत्नी को तसल्ली दी
तू तो खामाख्वाह परेशान हो रही है. लड़के ने शादी के लिए ‘हां’ कर दी है पर....’
मैं तुम्हारा ‘पर’ अच्छी तरह से जानती हूं. उस लड़की के बारे में सोचना छोड़ो. जहां भाग्य होगा, हो जाएगी शादी. हर बार दुकान से सौ-डेढ़-सौ का नमकीन-मीठा उधार लाते हो और....’ पत्नी अपनी नम आंखें धोती के पल्लू से पोंछने लगी.
एकाएक लड़की ने घोषणा कर दी, ‘पापा, मैं बी. एड. करूंगी. आपने मेरा एक साल यूं ही बरबाद कर दिया.’
पर बी. एड. में कह देने से ही दाखिला हो जाएगा, बिना सिफारिश के कुछ नहीं होगा.’
बेटी के गाल पर आंसू सूख चले थे. वह बोली-‘पापा, ये सब मुझ पर छोड़ दें. मैं डिग्री कालिज की प्रोफेसर के बच्चों को पढ़ाने जाती हूं. मिसिज ढींगरा मेरी मदद जरूर करेंगी.’
उसकी बात पर मैं चुप रहा तो मेरे कंधे पर सिर रखते हुए बोली-‘पापा, अपने चैपट बिजनिस पर ध्यान दो. मार्किट में फंसी अपनी उधारी निकालो. मेरी चिंता छोड़ो. मैं अब नौकरी करूंगी.’
मुझे लगा जैसे किसी ने मेरे शरीर में विटामिन का इंजेक्शन लगा दिया हो. मेरे अंदर स्फूर्ति का संचार होने लगा.
प्रस्तुति: विनायक
कदम-कदम पर हादसे’ से

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