सब ओर से हताश-निराश पोस्ट ग्रेजुएट बेरोजगार शहतूत के पेड़ के नीचे आकर बैठ गया और उस इंटरव्यू के बारे में सोचने लगा, जो उसके जैसे लोगों का वक्त बरबाद करने से ज्यादा कुछ नहीं था. उसे घर जाने की कोई जल्दी नहीं थी. वह मां-बाप के लिए आम नहीं बबूल का पेड़ सिद्ध हुआ था. एकाएक उसको शोर सुनाई दिया—
‘यों निराश होकर बैठने से तुम अपने शरीर और मन को बीमार बना रहे हो. मुझे देखो, सर्दी-गर्मी-बरसात सब सहता हूं. अभी-अभी स्कूली बच्चों को तुमने देखा होगा. मुझ पर लगे कच्चे-पक्के शहतूतों को पाने के लिए मुझपर पत्थर मार रहे थे. मुझे उन बच्चों से बड़ा प्यार है. तुम अपने से प्यार करना सीखो. मेरा धर्म तो फलना है और दूसरों को देना ही देना है. फल न लगे तो कौन मेरी परवाह करेगा! उठो, अपने शरीर को फलदायक बनाओ.’
एकाएक उसको लगा कि उसके अंदर कोई शहतूत का वृक्ष उगने लगा है. वह एक नए निश्चय के साथ उठा. जहां चलने लगा तो उसने देखा कि शहतूत के वृक्ष की डालियां झूमने लगी थीं...मानो उसको आशीर्वाद दे रही हों.
प्रस्तुति: विनायक
‘कदम-कदम पर हादसे’ से
बहुत ही प्रेरणादायी लघु-कथा...
ReplyDeleteसुन्दर लगा..
वैसे आजकल मैं भी लघु कथाएं ही लिखने लगा हूँ..
ब्लॉग पर आ कर विचार ज़रूर दें.. अच्छा लगेगा..
आभार