फूलो ने भी अपना दुखड़ा सुनाना शुरू किया, ‘मेरे आदमी का यही कसूर था कि उसने हक की आवाज उठाई थी. उस पर इल्जाम है कि उसने फैक्ट्री में आग लगवाई और मजदूरों को भड़काया. छह महीने से ऊपर हो चुके हैं. फैक्ट्री खुल चुकी है. हड़ताली काम पर चले गए हैं, पर मेरा आदमी अब भी जेल में है.
एक अधेड़ औरत जिसके हाथ में मनके की माला थी, फिराते हुए बोली—‘सब कुछ ऊपर वाले पर छोड़ दो बहन, वह जो करता है, ठीक करता है.’
इसपर फूलो किलस गई—‘क्या खाक ठीक करता है. मैं तीन महीने से व्रत रखती आ रही हूं. और बराबर प्रसाद चढ़ाती हूं. लगता है, बाबा हनुमान कारखाना मालिक की तरफ हो गए हैं. नहीं तो बाबा को क्या नहीं मालूम कि मेरा आदमी बेकसूर है.’
यह सुनकर फजलु की बीबी बोली—‘सच्ची कह रई हो बहन. मेरा खाविंद दंगों में हाथ ठेला लेकर गया था. मैंने मना करा पर उससे बच्चों की भूख नहीं देखी गई. अब तक मैं कमाल खां पर तीन चद्दरें चढ़ा चुकी हूं. पर लगता है कि कमाल साब अमीरों की चीजें ज्यादा पसंद करते हैं. अल्लाह के हुजूर में ये कैसा अंधेर!’
उन औरतों के बीच एक मैली-कुचैली बूढ़ी, जिसकी कमर समय ने झुका दी थी, लाठी के सहारे खड़ी अत्यंत धीमी आवाज में खरखराई—
‘तुम दोनों कलट्टर की कोठी पे जाके बैठ जाओ. अन्न-जल छोड़ दो. गांधी बाबा ने फिरंगियों को इसी तरह भगाया था.’
‘अरे, यह भिखारिन कैसा उल्टा पाठ पढ़ा रही है.’ कई औरतें चिल्लाईं, ‘चल भाग यहां से!’
प्रस्तुति: विनायक
‘कदम-कदम पर हादसे’ से
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