Monday, November 8, 2010

दायित्वबोध

विशाल बादलों का झुंड सारी रात चलता रहा और देश के जंगल के ऊपर छा गया.
बादलों ने खबर भिजवाई कि पेड़ों को विनाश से बचाने के लिए बहुत सारे देशों के लोग एक जगह एकत्रित हुए हैं.
ये तो बड़ी अच्छी खबर है, बादल भाई.’ विशाल बरगद ने झूमते हुए कहा. इतने में पक्षी भी चहचहाने लगे. हिरन कुलांचे भरने लगे. मोर नाचने लगे. और जलमुर्गियां प्राकृतिक झील में किल्लोल करने लगीं.
तभी बादलों ने देखा कि अनेक लोग कुल्हाड़ियों और आरियों सहित जंगल में घुस गए हैं, ‘हे वृक्ष मित्रो! सावधान, कुछ हत्यारे जंगल में आप पर हमला करने के लिए घुस आए हैं.’
वृक्षों ने असहाय भाव से बादलों की ओर देखा. पशु-पक्षी डरते हुए जहां-तहां दुबकने लगे.
साथियो चलो, अपना काम शुरू करो.’ बादल क्रुद्ध हो उठे. घनघोर बारिश शुरू हो गई. मोटे-मोटे ओले गिरने लगे. बिजली कौंधने लगी.
इस मौसम में और ऐसी बरसात, मैंने कभी नहीं देखी.’ फारेस्ट गार्ड ने बीड़ी का कश मारते हुए कहा. जंग के पेड़ सांय-सांय कर रहे थे. एकाएक बिजली चमकी और कुछ ही क्षणों में धड़ाम की आवाज पूरे जंगल में गूंज गई.
अच्छा मित्रो! हम चलते हैं. हमने अपना काम कर दिया है.’ फिर एक-एक कर बादल छितराने लगे.
बाद में घने जंगल के फारेस्ट गार्डों को छह-सात जली हुई लाशें मिलीं. कुल्हाड़ियां और आरियां इधर-उधर बिखरी पड़ी थीं. जंगल के अन्य पेड़ उस वृक्ष की प्रशंसा कर रहे थे, जिसे चीरती हुई बिजली हत्यारों तक पहुंची थी. यद्यपि पेड़ काफी घायल हो चुका था. लेकिन उसका एक तना अब भी गर्व से खड़ा हुआ अपनी डालियों के पत्तों को हवा में मंद-मंद लहरा रहा था. मानो जाते हुए बादलों का शुक्रिया अदा कर रहा हो.
प्रस्तुति: विनायक
कदम-कदम पर हादसे’ से 

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