चपरासी के चेहरे पर संतोष के साथ-साथ एक प्रकार की विजय मुस्कान थी. बड़ा बाबू बोला—‘ले आया डीएम से फाइल!’
चपरासी के हाथ से पत्रावली लेकर वह उसको पढ़ने लगा, ‘भाई तेरे आदेश तो काफी बढ़िया हैं. डीएम साहब ने तुझे तीनों आरोपों से बरी कर दिया है.’
चपरासी सुरेश कुछ नहीं बोला तो बड़े बाबू ने कहा, ‘हमने तो साहब से कह दिया था कि तेरे लड़के की तबियत खराब थी, वरना तू तो ड्यूटी का पक्का पाबंद है.’
सुरेश के जी में आया कि वह बड़े बाबू का मुंह नोंच ले. इसी ने सस्पेंशन की रिपोर्ट बनाकर साहब के आगे पेश की थी. आरोप यह था कि सेक्रेट्री साहब के प्रोग्राम में इंस्पेक्शन हाउस पर सुरेश की ड्यूटी लगाई थी और वह वहां पहुंच नहीं सका था, यद्यपि सेक्रेटरी साहब वहां ठहरे नहीं थे और कार से दिल्ली चले गए थे. पर इसे चपरासी की हुक्म-उदूली माना गया.
‘अब क्या सोचने लगा, जा. अब तो तेरा काम हो गया. अच्छा ऐसा कर चार-पांच चाय ले आ.’
‘पर बड़े बाबू, दस महीने हो गए हैं. आपने मेरी निलंबन काल की एक बटा तीन तनख्वाह भी नहीं निकाली है. मेरे पास चाय के पैसे कहां से आए!’
‘अबे, तेरे पैसों की चाय पीकर हमें पाप लगाना है! ये ले पांच का नोट..!’ बड़ा बाबू किलस गया था.
चाय सुड़कता हुआ बड़ा बाबू बोला, ‘अब चिंता मत कर, जिला अधिकारी ने तुझे सवेतन बहाल किया है.’
‘सारी मेहरबानी आपकी है बड़े बाबू. दूध, बनिये और बच्चों की स्कूल की फीस, सब उधार लेकर काम चलाया है. बच्चा बड़ी मुश्किल में है. पूरे आठ हजार खर्च हो गए, उसके इलाज में.’
‘ठीक है भई सुन लिया, अब तू घर जा. तेरा काम जल्दी कर दूंगा.’
चपरासी के जाते ही बड़ा बाबू एकाउंटेंट व डिस्पेचर की ओर मुखातिब हुआ—
‘साला हमसे बहस करता है, आ गई अकल ठिकाने! कहता था साहब के घर काम नहीं करूंगा. अबे हम भी तो साहब के घर सब्जी ले जाते हैं. अभी इसे इतनी जल्दी वेतन नहीं लेने दूंगा.’
ऐसा कहते ही उसने चपरासी की बहाली वाली फाइल को अलमारी में रखा और धड़ाक से बंद कर दी और एकाउंटेंट से बोला—‘आज जरा बच्चे की तबियत खराब है, कल शायद न आऊं!’
‘क्या हुआ बच्चे को?’ एकाउंटेंट ने बनावटी चिंता दिखाई.
‘होना क्या है, बच्चों को सर्कस दिखाना है. आखिरी दिन है कल वरना सर्कस का पास बेकार हो जाएगा.’ यह कहते ही बड़ा बाबू खिसियानी हंसी लिए उठा और बोला—
‘अभी आया, जरा टायलेट हो आऊं.’
प्रस्तुति: विनायक
‘कदम-कदम पर हादसे’ से
No comments:
Post a Comment