तीनों ही रचनाएं बेहद कमजोर थीं. संपादक ने एक नजर में रिजेक्ट मार्क कर, वापसी वाली फाइल में रख दिया. इतनी ढेर सारी रचनाओं में कुल दस-पंद्रह रचनाएं ही उसे काम की लगी थीं.
अचानक उसे कुछ ध्यान आया. अभी-अभी उसने तीन रचनाएं रिजेक्ट की थीं. संपादक के नाम पत्र के लेखक ने एक कोने पर लिखा था-‘ओम गणेशाय नमः.’
उसने फाइल को खोला और तीनों रचनाओं को फिर से पढ़ा. विशेषाक के लिए तीनों ही रचनाएं बेकार थीं. उसने फिर से उन रचनाओं को फाइल में रख दिया.
‘क्या हो रहा है इन लेखकों को, वही घिसे-पिटे पुराने कथानक और लचर शैली.’ संपादक खुद बड़बड़ाने लगा.
उसे अचंभा था कि लेखक ने ‘ओम नमः शिवाय’ लिखकर आखिर क्या सिद्ध करना चाहता था. क्या यह लिख देने से रचनाएं सशक्त हो जाएंगीं. ‘नहीं बिलकुल नहीं!’ वह विशेषांक में कोई हल्की चीज नहीं आने देगा. उसके जी में आया कि वह संपादक को लिखे पत्र को पूरा पढ़े. उसने फिर से फाइल खोली और पत्र पढ़ने लगा-‘संपादक जी, आपके विशेषांक हेतु तीन रचनाएं संलग्न कर रहा हूं. इनमें कोई कमी हो तो आपको ठीक करने का पूरा अधिकार है. आप जी तो नए लेखकों को सदा प्रोत्साहन देते हैं.’
पत्रा के कोने पर उसनकी नजर ‘ओम गणेशाय नमः’ पर पड़ी और उसके सामने गणपति बाबा मोरिया की तस्वीर साकार हो उठी. उसका मन श्रद्धा से भर उठा.
अचानक उसने कुछ सोचा और विशेषांक हेतु तीसरी रचना को ठीक करने लगा.
प्रस्तुति: विनायक
‘कदम-कदम पर हादसे’ से
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