Monday, December 27, 2010

लौटते हुए

उसने पसीने से भीगा हुआ रूमाल फिर जेब से निकाला और गर्दन के पिछले भाग को रगड़ते हुए मैनेजर को एक पाश गाली बकी. उसे याद है कि बैंच पर बैठा हुआ लड़का कह रहा था‘यार, इंटरव्यू तो खाना-पूरी करना है. आदमी तो पहले ही रख लिया गया है.’
उसने घृणावश उस बिल्डिंग की ओर थूक दिया जिसकी दसवीं मंजिल पर इंटरव्यू हुआ था. अब वह भभकती सड़क पर आ गया था. सूरज जैसे उसके सिर पर चिपक गया हो. तप गया उसका माथा. ऊपर से सड़ी दोपहरी में बस का इंतजार.
उफ!’ उसके मुंह से निकला, ‘पता नहीं कौन-सी बस में नंबर आएगा!’ और वह एक फर्लांग लंबी लाइन में पीछे जाकर खड़ा हो गया है.’
जब वह स्टेशन पर आया तो भूख जवान हो चुकी थी. शो-केस में ग्लूकोस बिस्कुट देखकर उसके मुंह में पानी आ गया. उसने चाय पीने का निश्चय किया. स्टाल पर खड़ा-खड़ा वह सोचने लगा कि अगर एक चाय-बिस्कुट के बदले डबल रोटी और एक सिगरेट खरीदेगा तो घर न जा सकेगा. क्योंकि उसकी जेब में घर तक का ही किराया बचा था.
घर जाएगा तो मां पूछेगी, क्या हुआ?...तब!
हर बार की तरह उसने मां को यह जवाब देना उचित न समझा...
मां, उन्होंने कहा है कि हम तुम्हारे घर चिट्ठी डाल देंगे. तब मां बुझ जाएगी. फिर रोजाना की वही तकरार. बीमार बाप की खांसी और बड़े भाई साहब के ताने‘और कराओ बीए. मैं तो पहले ही कहता था कि-किसी लाइन में डाल दो. पर मेरी सुनता ही कौन है.’
तब उसकी पत्नी उसका हाथ पकड़कर दूसरे कमरे में ले जाती हुई कहेगी, ‘चलो जी, क्यों खामाखं सिर खपाते हो.’
अचानक उसका ध्यान भंग हुआ, ‘बाबू चाय पीओगे?’
हां भाई, एक कड़क चाय और ब्रेड-पीस में देना.’
गर्म चाय और ब्रेड पीस से उसे कुछ राहत मिली. उसने पांच सिगरेट और खरीदीं. गाड़ी आने में अभी आधा घंटा था. उसने सिगरेट आराम से सुलगाकर थकान-भरा धुंए का बादल उड़ाया और बैंच पर पसर गया.
उसकी योजना थी कि वह बिना टिकट घर जाएगा. जाहिर था कि पकड़ा जाएगा और कैद हो जाएगी. चलो कुछ दिन तो घर के जहरीले माहौल से निजात मिलेगी.
प्रस्तुति: विनायक
कदम-कदम पर हादसे’ से 

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