उसने चिट अंदर भिजवा दी थी. संपादक ने तुरंत ही बुलवा लिया—‘आओ गुरु, इतने दिन कहां रहे? तुम्हारी कहानी मुझे मिल गई थी. बाद पोस्ट भेजने की क्या जरूरत थी. अब तुम मुझे इस तरह शर्मिंदा करोगे?’ ऐसा करते ही उसने घंटी बजाई और पियन से काफी लाने को कहा.
‘देखो मित्र, दोस्ती अपनी जगह है और साहित्य अपनी जगह. अब तुम एक व्यावसायिक पत्रिका के संपादक हो. कोई हल्की चीज न जाने पाए.’
ऐसा कहते ही रवि ने अपनी बढ़ी हुई दाढ़ी में हाथ फेरा. उसे वे दिन याद आ गए, जब दोनों बेरोजगार थे और सस्ती दुनकार पर उधार चाय पीते थे. दरअसल रवि ही उसे कहानी-क्षेत्र में लाया था.
‘तुम ठीक कहते हो, गुरु! जब तक मैं इस पद पर हूं, पत्रिका में कोई हल्की चीज न जाने दूंगा. रवि, माइंड मत करना. कोई और अच्छी कहानी दो, ये नहीं चलेगी. इसे कहीं और भेज दो.’
काफी पीने के बाद दोनों चुप रहे. फिर रवि बोला—‘फिलहाल तो मेरे पास कोई और अच्छी कहानी नहीं है. ट्राई करूंगा.’ और वह अपमानित अंदाज में उठ लिया.
प्रस्तुति: विनायक
कदम-कदम पर हादसे’ से
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