जब मेरी आंख खुली तो मैंने अपने दोगले मित्र को पास खड़े पाया. मुझे जागता पा उसने गिलास के पानी में ग्लूकोस घोलकर दिया. चुपचाप मैं पी गया पर मेरे हृदय में रक्त के बजाय क्रोध का संचार होने लगा. आंखों में खून तैर आया—‘तुम बुजदिल हो. मुझे यहां क्यों लाए?’
‘शश्श्श!’ उसने उंगली होंठ पर रखकर धीरे-से कहा—‘बोलो नहीं, चुपचाप पड़े रहो.’
मैं अपने इस मित्र को मजदूरों का नेता मानने के लिए शुरू से ही तैयार न था. काम चलाऊ भाषा में वह मिल-मालिक का चमचा था. और मुझ जैसे ईमानदार नेता को अपनी जानिब खींचने की असफल कोशिश कर चुका था.
ईमानदार आदमी पर आरोप लगाना ज्यादा आसान होता है. यही हुआ. स्ओर इंचार्ज होने के नाते मुझपर आरोप लगाया गया कि मैंने चालीस किलो तांबा गायब करवाया था. लिहाजा मेरी नौकरी खत्म.
‘अब तुम कैसे हो?’ उसने यह बात कहते ही मुस्कराहट-भरा मुखौटा ओढ़ लिया. मेरे कुछ न बोलने पर उसने धीरे से कहा—‘देख लिया न मजदूरों को. किसने तुम्हारा साथ दिया? सारा काम बाखूबी चल रहा है इस मिल का.’
इस पर मैं कुछ नहीं बोला तो वह कह उठा—‘सुनो, मैं तुम्हें एक ऐसा हलका काम दिलवा दूंगा, जिसमें कुछ भी मेहनत नहीं करनी होगी. रुपये भी पूरे पंद्रह सौ महीना मिलेंगे. मजे की बात तो यह है कि तुम एक-एक मजदूर से अपने अपमान का बदला भी ले सकते हो.’ यह कहते ही उसने मुझे एक चादर दिखाई जो अभी तक उसके जिस्म के चारों ओर लिपटी हुई थी.
‘मेरा काम बस इतना ही है कि मैं रात के समय यह चादर किसी मजदूर को ओढ़ा देता हूं और मजे से पंद्रह सौ रुपये महावार पीट लेता हूं.’
‘चादर ओढ़ाना तो पुण्य का काम है?’
‘यही तो तुम्हें समझाना चाहता था. पर तुम अब तक समझे ही नहीं.’
उसी रात को मैं मित्र द्वारा दी गई चादर को लेकर अपने किसी मजदूर भाई की झोपड़ी में घुसा और उसकी पत्नी से बोला की वह उस चादर को अपने सोते हुए पति पर डाल दे. उसकी पत्नी ने ऐसा ही किया. क्योंकि वह जानती थी कि मेरे द्वारा दी गई चादर भाग्यवाले को ही मिलेगी.’
उस मजदूर की पत्नी ने सुबह जब अपने पति के ऊपर से चादर हटानी चाही तो भय से चीख पड़ी. चादर का रंग सुर्ख पड़ चुका था. उसका पति अब भी गहरी नींद में सोया था. पति का चेहरा देखकर वह गश खाते-खाते बची. गालों की हड्डियां शंकु के समान उभर आई थीं. आंखें धंस गई थीं. पेट की पसलियां खाल को फाड़कर बाहर आना चाहती थीं. जब उसे जगाया गया तो मजदूर ने बताया कि उसके पैरों में जान नहीं रही थी. शायद वह किसी बीमारी द्वारा जकड़ लिया गया था.
वह औरत दौड़ी-दौड़ी मेरे पास आई और वह चादर मुझपर फंेक, गाली बकती हुई चली गई.
अब मुझे चादर को किसी दूसरे मजदूर के लिए इस्तेमाल करना था.
प्रस्तुति: विनायक
‘कदम-कदम पर हादसे’ से
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