वह पूरी शक्ति से भाग रहा था. जब वह रुका तो उसने अपने को किसी बड़े नगर में पाया. कई बार रो पड़ने के बावजूद किसी ने भी उसे अपने पवित्र नगर में घुसने नहीं दिया था. अब वह गांव की ओर दौड़ रहा था.
उसे अच्छी तरह से मालूम था कि पीछा करने वाली डायन उसके मां-बाप को भी निगल गई थी. पूरी की पूरी जिंदगी उसने इस डायन की कैद से छुटकारा पाने में बरबाद कर दी थी. किसी तरह वह एक रात को चुपचाप भाग निकला था.
उसने एक झोंपड़ी का द्वार खटखटाया. खस्ता हालत में खड़ा टट्टर उसके जरा-सा ढकेलते ही खुल गया. लेकिन सामने पड़ते ही वह भय से चीख पड़ा. एक बूढ़े की लाश के पास खड़ी वह क्रूरता से मुस्करा रही थी.
‘ये बुड्ढा भी वर्षों पहले मेरे चंगुल से निकल भागा था. एक हफ्ते तक मैंने इसको खाट से नहीं उठने दिया.’
उसके यह सोचते ही कि वह तीन दिन से भूखा है, उसके पेट में ऐंठन-सी हुई. वह मुड़ भागा. वह मुस्कराती रही.
जैसे ही वह एक मोड़ पर आकर रुका, वह सामने थी. तुरंत ही उसने ढेर-सा खून उगला और उसके कदमों में गिर पड़ा.
प्रस्तुति विनायक
जगदीश कश्यप की फाइल से