इंटरव्यू के लिए आए इतने आदमियों को देखकर उसे कोई अचंभा नहीं हुआ. लेकिन चपरासी की पोस्ट के लिए इतनी लंबी भीड़ उसने पहली बार देखी थी. हर बार की तरह वह इस बार एम. ए. तक के प्रमाणपत्र लाना उचित न समझा, क्योंकि फार्म में तो कुल हाई स्कूल ही भरा था. जब उससे पूछा जाएगा कि इतने साल वह क्या करता रहा तो उसका सीधा-सा जवाब होगा—
‘साब! इतने दिन में भाई की दुकान पर चाय बनाता रहा हूं. शादी होने के कारण अब वह मुझसे अलग हो गया, अतः सारे घर का भार मुझ पर ही आ गया है. मुझे हिंदी-अंग्रेजी की टाइप भी आती है.'
‘नहीं-नहीं!’ वह ये शब्द नहीं बोलेगा. नहीं तो खामख्वाह शक हो जाएगा.’
‘मास्टरजी, आप यहां?’ किसी न उसे टोका तो वह हड़बड़ा गया. वह गणेशी था. जिसे उसने हाई स्कूल में टयूशन पढ़ाया था.
‘तू यहां कैसे गणेशी?’ उसे समझ रहा था कि गणेशी ने भी चपरासी की पोस्ट के लिए फार्म भरा होगा.
‘मास्टरजी आपकी दुआ से हाईस्कूल पास कर लिया. पर आई. टी. आई करने के बाद भी खाली हूं. इस बार फार्म भरा है. यहां चाचा का लड़का स्टोरकीपर है. क्या पता काम बन जाए! पर आप यहां कैसे?’
तत्काल ही उसके मुंह से निकला—‘चाचा का लड़का गांव से आया था. उसने भी फार्म भरा है. उसी को ढूंढ रहा हूं, न जाने कहां चला गया है! अच्छा मैं अभी आया.’ कहते ही वह पलट पड़ा.
इंटरव्यू के लिए पुकार शुरू हुई—‘मिस्टर रवि कुमार!’
कोई नहीं बोला तो दुबारा पुकारा गया. इस बार सब लोग एक-दूसरे के चेहरे देखने लगे. जब तीसरी बार जोर से पुकारा गया तो आपस में खुसर-पुसर होने लगी.
उधर गणेशी सोच रहा था—‘रविकुमार तो उसके मास्टरजी हैं.’
प्रस्तुति : विनायक
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